Thursday 30 April 2015

एक पहल

हम इंसानों की एक ख़ास बात ये है कि हम में से बस कुछ लोगों को छोड़ दिया जाये तो बाकी के सभी मनुष्य सफाई पसन्द होते हैं। हमें सफ़ाई इतनी पसन्द होती है कि हम अपने घर को एकदम साफ़-सुथरा रखने के लिये ये भी भूल जाते हैं कि सिर्फ़ हमारे घर को ही नही बल्कि इस पूरी धरती को ही सफ़ाई की ज़रूरत होती है। आपको अगर ज़रा भी लग रहा है कि शायद मेरे इस पोस्ट में मानव जाति पर कोई कटाक्ष आपको दिखेगा, तो बेशक़ आप सही हैं।

कभी-कभी मौका मिलता है मुझे प्यार, मोहब्बत या ज़िन्दगी जैसे विषयों से हटकर कुछ लिखने का। अब अगर ऐसा कोई मौका मेरे हाथ लगा है तो बेशक़ मैं इस मौके को बिना गवाये इसका भरपूर इस्तेमाल करना चाहूँगी। मैंने बहुत बार देखा है बहुत से ऐसे लोगों को जो अपनी सेहत को लेकर और अपने आस-पास के वातावरण को साफ़ रखने की होड़ में इतने तल्लीन हो जाते हैं कि ये तक भूल जाते हैं कि जाने-अनजाने में ही सही लेकिन वो किसी ना किस रूप में ब्रह्माण्ड के सबसे खूबसूरत ग्रह को नुक्सान पहुँचा रहे हैं। इन लोगों की साफ़-सफाई की ये इतनी अच्छी आदत कभी-कभी तो धरती के लिए इतनी बुरी सिद्ध हो जाती है की क्या कहिये। मैं ये नही कहती कि हर इंसान गलत है, लेकिन हाँ कहीं ना कहीं, किसी ना किसी से तो गलती हो ही रही है।

आखिर किस गलती की ओर ईशारा कर रही हूँ मैं? आख़िर इस पोस्ट में ऐसा क्या लिखना चाहती हूँ मैं? चलिए आपके कीमती वक़्त को बर्बाद ना करते हुए मैं मुद्दे की बात पर आती हूँ। मेरा ईशारा हम मनुष्यों की उस आदत की तरफ है जिसमें हम अपने आस-पास के वातावरण को साफ़ रखने के लिए बाकी के वातावरण की स्वच्छता की तिलांजलि दे देते हैं। बेहतर है मैं यहाँ कुछ उदाहरण आपके समक्ष रख दूँ। ताकि मेरी बात की गहराई तक आप अपनी पहुँच बना पायें।फर्ज़ कीजिये कि एक परिवार अपनी कार में किसी पहाड़ी ईलाके में घूमने गया। अच्छा है थोड़ा वक़्त परिवार के साथ बिताकर हम अपने रिश्तों को और मज़बूत कर सकते हैं। अब अगर कोई घूमने गया है, तो खूब मस्ती भी होगी, और उस मस्ती में आप अपने कुछ सामान को उन पहाड़ों में ही भूल सकते हैं। वो सामान जिसे उसके गंतव्य तक पहुँचाना आपकी जिम्मेदारी थी, परंतु आपने ऐसा किया नही। मैं किस सामान की बात कर रही हूँ? क्या इस सवाल ने आपके दिमाग में दस्तक दी? जी हाँ मैं बात कर रही हूँ इस सारे कूड़े-कचरे की जो आप अपने पीछे छोड़ आये हैं। चिप्स के पैकेट, बचा हुआ खाना, पानी की बोतल और भी ना जाने क्या-क्या। क्या आपको नही लगता कि आपको उस सारे सामान को कूड़ेदान में डालना चाहिए था। बेशक, आपको करना तो यही चाहिये था। पर ऐसा किया तो नही आपने।

ये सिर्फ हमारी ढ़ेर सारी गलतियों में से एक नमूना था। ऐसे बहुत से नमूने हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में आप देख सकते हैं। जैसे घर का कूड़ा सड़क पर डाल देना, खाने-पीने की चीज़ों के लिफ़ाफ़ों या पैकेट को यहाँ-वहाँ फैंक देना, कूड़ेदान को देख कर भी अनदेखा कर देना, शौचालय बने होने के बावज़ूद खुले में ही शौच में चले जाना, और ना जाने क्या-क्या। ये सभी ऐसे उदाहरण है जो कोई भी आम इंसान आपके समक्ष रख सकता है और कोई भी आम इंसान इनकी मिसाल हो सकता है। बात ये नही है कि हम कौन-कौन सी गलतियाँ कर चुके हैं। बात यहाँ ये है कि आख़िर इन गलतियों से हम कोई सबक क्यूँ नही ले रहे हैं?

मैंने बहुत बार सुना है कि अकेला चना भाड़ फोड़ सकता है। वैसे ऐसा तो आज तक सुना ही है मैंने। लेकिन हाँ मानती हूँ कि अगर कोई ठान ले कि उसे किसी गलत बात को सही करना है तो बेशक वो सफल हो सकता है। आपको लगेगा कि मैं इतना कुछ लिख गई हूँ तो क्या कुछ किया भी है मैंने या यूँ ही डींगें हाँक दी हैं इतनी और खुद के दामन को पाक-साफ़ रख, सारी ही मानव  जाति को गलत ठहरा दिया है। तो साहब मैं आपको बता देना चाहूँगी कि मैं पिछले कई वर्षों से इस कोशिश में हूँ कि इस धरती को साफ़ सुथरा रखने में अपनी थोड़ी-सी भूमिका को मैं बखूबी निभाऊँ। और इसके लिए मैं सिर्फ इतना ही करती हूँ कि जहाँ तक हो सके कूड़े को कूड़ेदान में ही डालती हूँ, अगर कूड़ादान ना दिखे तो खाई हुई चीज़ों के पैकेट को अपने बैग में डाल लेती हूँ और घर आकर उन्हें कूड़ेदान तक पहुँचा देती हूँ। मैं बेवजह चलते नल को बंद कर देती हूँ। हमेशा बिजली को ज़रूरत पड़ने पर ही प्रयोग में लाती हूँ। आपको लगेगा इसमें क्या बड़ी बात है।
पर मैं सिर्फ इतना ही लिखूँगी,"एक-एक बूँद जुड़ती है, तभी सागर बनता है...!"

आप मानें या ना मानें, लेकिन पहल ज़रूरी है। बस आप एक बार पहल करके देखिये, तस्वीर सिर्फ बदलेगी ही नही, बल्कि और खूबसूरत भी हो जायेगी।

This post is a part of http://greenyatra.org .

Please watch

Tuesday 28 April 2015

खौफ़

25 अप्रैल 2015, यह तारीख नेपाल के सीने पर एक गहरा ज़ख्म छोड़ गई है। यूँ प्रकृत्ति का ऐसा रूप हमने पहली बार नही देखा है। जब भी कहीं ऐसी कोई आपदा आती है तो हमारे सारे पुराने घावों को ताज़ा कर जाती है। अब चाहे वो भूकम्प हो, बाढ़ हो या फिर सुनामी। हम मनुष्य यूँ तो चाँद तक पहुँचने का दम रखते हैं लेकिन प्रकृत्ति के सामने हम आज भी बौने ही हैं। हम चाहे ब्रह्माण्ड के सभी उलझे रहस्यों को क्यूँ ना सुलझा आयें लेकिन फिर भी हम प्रकृत्ति की ताकत के आगे कमज़ोर ही रह जाते हैं।
मनुष्य जितनी भी ऊँची उड़ान क्यूँ ना भर ले लेकिन इस तरह की कोई ना कोई आपदा कभी ना कभी उसके पंखों को चीर डालती है। 25 अप्रैल को हर रोज़ की तरह मैं स्कूल में ही थी। जिस वक़्त भूकम्प के झटके आये मैं अपनी दसवीं कक्षा को गणित पढ़ा रही थी। मैं और मेरे विद्यार्थी अपने टॉपिक में इतने तल्लीन थे कि ज़मीन यानि कि ग्राउंड फ्लोर पर होने के बावज़ूद भी हमें कुछ भी महसूस नही हुआ। जैसे ही मेरी कक्षा समाप्त हुई और मैं अपनी कक्षा के साथ वाले कमरे में गई, जो कि हमारा स्टाफ रूम भी है, तो मेरे सहकर्मियों ने मुझसे पूछा,"मंजीत मेम आपको पता नही चला भूकम्प आया?" "नही तो, मुझे तो महसूस ही नही हुआ, और ना ही बच्चों को पता लगा।"मैंने उत्तर दिया। तभी मुझे लगा कि क्यूँ ना अपना फ़ोन चेक कर लूँ शायद पापा की कॉल आई होगी, और देखा तो पापा की तीन कॉल्स थी। मैंने पापा को फ़ोन किया तो उन्होंने बताया कि बहुत तेज़ झटका था और करीब सवा मिनट तक वो खौफ़ में रहे। हम हमेशा से फर्स्ट फ्लोर या ग्राउंड फ्लोर पर रहे हैं, अभी पिछले साल अप्रैल में हम एक तेरह मंज़िली ईमारत में आये हैं। और हमारा फ्लैट तेरहवीं मंज़िल पर ही है। मैंने पापा के फ़ोन के बाद अपना व्हाट्स ऐप चेक किया, वहाँ मेरी बहन ने भी कुछ मेसेज छोड़े हुए थे। घर जा कर जब मैंने समाचारों में देखा तो मैं दंग रह गई। अगले दिन रविवार के कारण मेरी छुट्टी थी और मैं घर के कुछ काम निपटाने में लगी थी कि तभी मेरी बहन चिल्लाई,"मंजीत फिर भूकम्प आया है।" मुझे महसूस हुआ और मैंने पंखों और टी.वी. को हिलता देखा, हमने भाग कर फ़ोन और चाबी उठाई, मम्मी को पकड़ा और सीढ़ियों की ओर भागे, ऐसी हालत में लिफ्ट का प्रयोग ना ही करें तो अच्छा है। आप विश्वास नही करेंगे तेरहवीं मंज़िल से दसवीं तक जाने में मेरे पैर बुरी तरह काँप चुके थे। कल से मेरी बहन बार-बार कहे जा रही थी कि उसने सबकी आँखों में मौत का खौफ़ देखा है लेकिन क्यूँकि मुझे कुछ महसूस नही हुआ था तो मैं उसकी बातों को मजाक में ही टाल रही थी। लेकिन 26 अप्रैल को कुछ सेकण्ड में ही मैं इतना डर गई थी कि मुझे लगा अब सब खत्म। मुझे सबसे ज़्यादा चिंता मम्मी की थी क्यूँकि हम भाग सकते थे सीढ़ियों पर, लेकिन माँ के लिये ये मुमकिन ना था। तभी एक अंकल बोले,"बेटा अब कुछ नही है, कोई झटका नही है, रुक जाओ।" तब जा कर मेरी साँस में साँस आई। मेरी बहन मेरी हालत देख कर बोली,"डर लगा या नही?" और वाकई मैं इतना डर गई थी कि तब तक भी मेरे पैर काँप रहे थे।

मैं परसों से सोच रही हूँ कि सिर्फ़ कुछ झटकों में मेरा ये हाल हो गया तो उन लोगों की क्या हालत हुई होगी जिनके घर और ईमारतें ताश के पत्तों की तरह ढह गए हैं? मौत के खौफ़ ने मुझे इतना डरा दिया तो मौत को सामने देख किसी का क्या हाल हुआ होगा? कहते हैं,"जा के पैर ना फ़टे बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई?" पर उन कुछ लम्हों ने मुझे इस बात का एहसास तो करवा ही दिया कि खुद की और अपने अपनों की जान जब ऐसे अचानक मौत की कगार पर खड़ी हो तो इंसान कैसा महसूस करता है।

पता नही मैं किसी पीड़ित के लिए कुछ कर पाऊँगी या नही, लेकिन मैं अपनी ये पोस्ट उन सभी लोगों के नाम करती हूँ जिन्होंने कभी ना कभी अपनी ज़िन्दगी में किसी ना किसी त्रासदी को झेला है। मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि आप सभी को इतनी हिम्मत और ताकत दे कि आप अपने दुखों से बाहर आयें और ज़िंदगी को फिर से एक मौका दें।

क्यूँकि,
"ज़िंदगी रुकने का नही, चलने का नाम है,
ज़िन्दगी थकने का नही, बढ़ने का नाम है...!"

Monday 27 April 2015

Celebrate Life


I do believe that Life is the most precious gift i could ever get. And i think you will also not disagree on this point. We humans are the best creations of God. He gave all a life, no matter short or long, to enjoy every single moment and enjoy every single thing attached to it. But we humans sometimes disappoint the almighty by not admiring the most beautiful gift i.e. Life. We always ignore the beauty of present moment either by remembering our past or worrying about the future. I always wonder why we all do such stupid things. But then sometimes i realise that somedays we thank God by celebrating life and that too without any big occasion.

Everybody has his or her own zone of happiness and celebration. And i do have mine too. But, i am a middle class person so my wishes are not so high and my dreams are not so big. Even small things make me feel good and make my day. I don't think i wait for big things to come in my life so that i can enjoy my life. No, i don't. I try to enjoy the life the way it is. There may be many ways which help me enjoying and celebrating life. But writing is the best way for me to enjoy my life.

I am not a renown writer. Infact i am nothing. I am just a person handling two blogs and having a twitter wall with 5k followers. But still writing is the best way of my life to enjoy it. To #CelebrateLife in your own way isn't that much easy. But somehow each of us find a way to get this difficult job fulfilled. I too do this by writing. Sometimes i  write for myself and sometimes for others. And believe me it actually feels good when one write to win something and that too a voucher or an assured gift. Well, who said that winning a voucher doesn't add to the beauty of life. It does. And it actually encourages you to keep writing good stuffs sometimes for yourself and sometimes for others.

Writing let me out my emotions which otherwise would die  because not every feeling finds a proper outlet. Sometimes when i feel low and have nobody around me then i pen down myself and my ideas. You will ask how it let me celebrate my life. Well, see if i write and somebody read it and praise my work then i just can't explain how it feels and how it makes me enjoy my writing, my way of saying and my way of living. I love when people who follow me on twitter praise those 140 words which i randomly write there. And if someone says that i actually wrote what he or she wanted to read then believe me it feels awesome. Really awesome. Well, believe me doing things which make you feel happy from heart are the ways to enjoy and celebrate life. Let yourself fly and enjoy the every single moment of your life by doing what you like and what you enjoy.

Your comments are always welcome. :-)

#CelebrateLifeAtIvy by owning a dream home at Ivy estate, an 85 acre estate with 34 acres of greenery and open spaces. Join the 1600 happy families already living here. Check out this walkthrough video and decide for yourself.

Friday 24 April 2015

Sharing the load

People say that life changes a lot after marriage. Though i am still single but i have noticed this fact by learning from the experiences of my friends. Many of my friends have got married. They usually call me and we discuss a lot about our lives. I don't have many things to say as nothing has changed in my life, but they do have as their lives have changed very much. One of my such friends was having a chat with me one day. I could sense from her chats and talks that there was something wrong with her. I asked her that was there any problem, she replied that those days she had to do a lot of work as she and her husband were living alone and no maid was available there. My friend is a working women so anyone can easily guess that she has to take two jobs at the same time. First, she has to handle her house and second she has to work. I asked her that was her husband not helping her in household chores. She replied that he considered household chores to be a women's duty. I really felt bad for her. I could sense the problem she was facing while balancing her life. She was divided between her house and her job. And this was actually ruining her life.

Another day my other friend made a call and i discussed about my new job with her and asked about her new life. She sounded very happy. She told me that her husband was really helping in nature. He never let her do anything alone. Whenever she was ill, he was always ready to do everything. She explained to me how her husband daily helped her in the household chores and how it added to their happy married life. Her husband's help let her finish her work easily. She never felt so tired and this allowed her to give leisure time to her husband.  She also let me know that on weekends her husband took her for dinner and let her relax for a day from the cooking job, he even sometimes gave her surprises by preparing breakfasts on Sunday mornings. I actually felt that her husband was really a dream boy for whom every girl dreamt off.

I don't say that in my opinion a husband should start doing every household chore in order to enjoy a happy married life. Or the secret for a happy married life is that a man should do household chores mostly. But what i wanna write is that no marriage can be happy until and unless both the partners will umderstand that it is a relationship which has to be nurtured by both of them. Happy marriages may have many reasons backing behind them. But i assure you that one of the best of them is to #ShareTheLoad . Sharing the load and burden of each other adds to the beauty of your relationship as it provides you with some leisure time which can be converted into a quality time to be spent together to know each other more and to love each other more. And more than that this will increase the sense of equality which in return will enhance the beauty of your relationship.

"I am writing for the #ShareTheLoad activity at BlogAdda.com in association with Ariel ."

You too can participate and blog about how sharing of load within the household leads to a happier, better quality household.

Your comments are always welcome. :-)

Thursday 23 April 2015

ख़्वाबों की उड़ान


कहते हैं,"हर किसी को मुक्कमल जहान नही मिलता, किसी को ज़मीन, तो किसी को आसमान नही मिलता...!"

ये पंक्ति ना जाने कितनी ही बार सुनी होगी आपने, और शायद ना जाने कितनी ही बार इसका इस्तेमाल भी किया होगा। पर एक बात जो यहाँ गौर करने वाली है, वो ये है कि क्या सच में हर किसी को वो नही मिल पाता है जिसकी उसने चाहत की होती है? क्या हर इंसान के सारे सपने पूरे नही हो पाते हैं? 

आगे पढ़ने या आगे बढ़ने से पहले एक सवाल पूछिये खुद से एक बार कि क्या कभी ऐसा हुआ कि मेरा कोई सपना पूरा नही हो पाया? क्या कभी मेरे किसी सपने की उड़ान बीच में ही रुक गई, या रोक दी गई? क्या कभी मेरे ख़्वाबों के परों को कुतर दिया गया? क्या कभी मैंने खुद ही अपने सपनों का गला घोंटा? क्या कभी मेरी जिम्मेदारियाँ मेरे सपनों के रास्ते में आई? क्या कभी मेरे अपनों के सपनों के लिए मैंने अपने सपने के बलि दी? अगर इनमें से किसी भी एक सवाल का जवाब आप हाँ में देते हैं तो बेशक़ आप आगे पढ़िये। :-)

मैं एक बात यहाँ साफ़ कर देना चाहती हूँ कि मैं किसी के लिए कोई प्रेरणास्रोत नही रही हूँ, हाँ लेकिन मेरे कुछ दोस्तों को, पता नही कैसे, पर ये लगता है कि कभी-कभी मेरे कुछ शब्द उनकी मायूस ज़िन्दगी में उम्मीद की किरणें जगा जाते हैं। बस अब ये कहिये की उनके मुझे इस तरह चने के झाड़ पर चढ़ा देने का ही नतीज़ा है या कि कुछ और मैं हर समय कोशिश करती रहती हूँ कि कुछ ना कुछ ऐसा ज़रूर लिखूँ जो किसी ना किसी को कोई उम्मीद दे या एक किरण ही दिखा दे रोशनी की। तो आज इस लेख को लिखने का उद्देश्य भी कुछ ऐसा ही है मेरा।

आप ज़रा एक बात पर ग़ौर कीजिये कि आपका ऐसा कोई ना कोई ख़्वाब ज़रूर होगा जो ऊपर दिये गये कारणों के कारण अधूरा रह गया होगा। जिसकी उड़ान बीच में ही रुक गई होगी। ऐसे बहुत से ख़्वाब होते हैं। आमतौर पर हर इंसान ऐसे बहुत से ख़्वाब अपनी आँखों में सजाये रहता है पर समाज की जंजीरें उसे अपनी गिरफ़्त में कुछ यूँ बाँधें रखती हैं कि वो चाहकर भी अपने सपनों की उड़ान पूरी नही कर पाता है। मैं ये नही कह रही हूँ कि आप समाज को भूल कर वो कीजिये जो आप चाहते हैं। नही ऐसा तो कतई सम्भव नही। पर हाँ एक बात जो मैं यहाँ लिखना चाहूँगी वो ये है कि क्या ये सम्भव नही कि आप समाज में अपनी भूमिका भी निभाते जायें और अपने सपनों के परों को ना कुतर कर उनकी उड़ान को भी जारी रखें।

आपको लगेगा ये असम्भव सी बात है। तो मैं यहाँ बस यही लिखूँगी-

"हम मनुष्य उस सर्वशक्तिमान ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृत्ति हैं, हम वो हैं जो सागर की अथाह गहराई को नाप चुके हैं, हम वो हैं जो आसमान का सीना चीर उसकी ऊँचाई को भाप चुके हैं, हम वो हैं जो गिर कर सिर्फ़ उठते नही हैं बल्कि खड़े हो जाते हैं, हम वो हैं जो हार कर थकते नही हैं बल्कि जीत को गले लगाते हैं। फिर समाज और ज़िन्दगी की ज़रा-सी बन्दिशें हमारे सपनों की उड़ान को कैसे रोक पायेंगी भला?"

Tuesday 14 April 2015

Dil Ki Deal


It's actually not easy to listen to your heart and do exactly what it wants. But, sometimes we all do that. And there comes a moment when our heart fly in its own sky. Well, that is where one makes a #DilKiDeal .

I am a teacher by profession. Though it was not my childhood dream to be a teacher. But i joined this field. Well, life has its own plan for everybody. I guess this was the plan life made for me. Every teacher has to fulfill some duties and he or she is tied to some responsibilities too. And one of them is to be a class teacher. Where one has to take attendance and do some other jobs viz collecting all the details about students, giving them roll numbers and many more things. And being a teacher i too have to fulfill such duties.

I still remember that last year after the completion of first semester i noticed that one of my students was coming late in the assembly. And because of this indiscipline he was chided every day during assembly. I knew he was a poor and innocent student but i was helpless and after all rules were the same for every student. I asked him to come on time. One day one of my students told me that the boy was coming late because he had to help his uncle in his shop in the morning. And i noticed that though he was coming late but he was not leaving any class despite of the fact that being absent in assembly would make his attendance short. If he was not a good boy then he could have not come to school but he didn't do so. The very same day i called him, he was very scared as he was late again but when he came i asked him that why didn't he discuss his problem with me? I might have helped you. He said,"Thank you for asking Mam, but you could do nothing." I asked him to leave. When he was gone, my heart asked me,"Can't i really do something?" Suddenly an idea hit in my mind. I stood up and went to the teacher who handled the assembly and its attendance. I asked for a favour to allow only one student to come late as his problem was genuine. And i assured her that no other student from my class won't make such a demand if she would allow him only. She agreed to help. I thanked her and came back to the student and told him about the special permission i had got for him. He was so glad to hear about it. He thanked me a lot. And though he came late everyday but whenever he came he immediately joined the school. He thanked me many times for this favour. I could see that magic of relief in his eyes. And i could feel the satisfaction of doing something for him.

I still thank myself for listening to my heart that day and asking for a special permission for the poor and innocent boy. I know everyone of us can listen to the heart and create a magic but what required the most is to follow it undoubtedly.

By writing this blog "I am participating in the #DilKiDealOnSnapdeal activity at BlogAdda in association with SnapDeal."

"I am participating in the #DilKiDealOnSnapdealactivity at BlogAdda in association with SnapDeal.”

Saturday 11 April 2015

टी.वी. खराब ही अच्छा है...


अजीब-सा लग रहा होगा मेरे इस पोस्ट का टाइटल आपको। है ना? पर सच में टी. वी. खराब ही अच्छा है। वो बात कुछ ऐसी है कि पिछले दिनों मेरे कमरे का टी. वी. खराब हो गया। अब वैसे ये कोई बड़ी बात नही है। मशीन है भई खराब हो भी सकती है। आखिर गारंटी और वारंटी भी खत्म हो चुकी थी बेचारे की अब तो। :-P

तो हुआ ये कि टी. वी. खराब हुआ तो समस्या ये हुई कि अब अपने मनपसन्द नाटक कैसे देखे जायें तो हमने और सिस्टर ने पापा और मम्मी के कमरे के टी. वी. की तरफ़ उम्मीद भरी नज़रों से देखा। अब हम हैं नौकरी पेशा बन्दे तो रात के वक़्त ही दो-चार प्रोग्राम देख लेते हैं और छुट्टी हो तो एक या दो फ़िल्म भी देख लेते हैं। तो भई अब हुआ ये कि अब शाम होते ही हम दोनों पहुँच जाते है माँ-पापा के कमरे में।

ऐसे लिविंग रूम में भी होता है टी. वी. पर जाने क्यूँ हम दोनों को वहाँ मजा नही आता। अब हर शाम हम सभी एक साथ बैठते हैं, खाना वहीँ खाते हैं, एक साथ ठहाके लगाते हैं, एक परिवार जो एक साथ होकर भी एक साथ नही बैठ पाता था, अब वही शाम के 6/7 बजे से रात के करीब 9/10 बजे तक एक साथ बैठने लगा। एक दिन हम सभी टी. वी. देख रहे थे और खाना खा रहे थे, तभी पापा बोले,"कितना अच्छा लग रहा है ना सब एक साथ बैठ कर खाना खा रहे हैं, वो भी कितने दिनों के बाद।" पापा की ये बात सुन कर एक पल के लिए मेरे ज़हन में ये ख़्याल आया,"हमारी ज़िन्दगियाँ भी कैसी हो गई हैं ना, एक ही घर में रहते हैं, लेकिन फिर भी कितने दूर हैं।" बुरा लगा मुझे, बहुत बुरा लगा। इससे पहले मैं और सिस्टर अपने कमरे में बैठ जाते थे टी. वी. चला कर और पापा-मम्मी अपने कमरे में। और बस ऐसे ही चल रही थी ज़िन्दगी। वैसे ऐसा नही है कि हम लोग एक साथ नही बैठते थे इससे पहले, खूब बैठते थे, मजे भी करते थे, लेकिन इस टी. वी. के खराब होने पर कुछ बातों ने मेरे ज़हन पर बड़ी गहरी छाप छोड़ी। थोड़ा ज़्यादा वक़्त एक-दूसरे के साथ बिताने को मिला। हम एक साथ बैठे, एक साथ नाटक देखे, किरदारों पर बातें की, अपनी राय दी, किसी की राय सुनी। मतलब हमने इन पलों को जिया, खूब जिया।

अब सोचती यूँ ये टी. वी. ना खराब ही अच्छा है। पर ये भी जानती हूँ कि एक दिन हम इसको ठीक करवा लेंगे। और फिर से हम अपने कमरे में ही बैठना शुरू कर देंगे। पर हाँ एक बात है कि अब हम कोशिश किया करेंगे कि कम से कम एक या दो प्रोग्राम एक साथ बैठ कर ज़रूर देखें। ऐसे या वैसे किसी तरह ही सही परिवार साथ रहे तो अच्छा ही लगता है। है ना?

चलिये इन शब्दों के साथ इस पोस्ट को विराम दे रही हूँ-
"जो सिर्फ साथ रहे वो परिवार नही, परिवार वो है जो साथ जिये।"

Tuesday 7 April 2015

100 प्रतिशत झूठ

कभी-कभी अच्छा लगता है मुझे अपने किसी पोस्ट का कुछ ऐसा टाइटल रखना जो पढ़ने में अजीब लगे। मुझे लगता है ये एक तरह के आकर्षण का कार्य कर देता है। प्रभावित होना मनुष्य की प्रवृत्ति में शामिल है। कहीं कुछ अलग-सा देखा नही कि मुड़ गए उसकी ओर। बस अब तो उसका पूरा अता-पता निकाल कर ही दम लेंगे। जाने क्या है ये? पर जो भी है कहीं ना कहीं हमारी जिज्ञासा को बढ़ा जाता है। यूँ देखिये तो जो भी है अच्छा ही है। और कुछ ना सही इस तरह से थोड़ा बहुत ज्ञानार्जन हो जाये तो भला बुराई भी क्या है इसमें? बहरहाल मैं अपने टाइटल के विषय में लिख रही थी। ध्यान यहीं केन्द्रित रखते हुए पोस्ट को आगे बढ़ा रही हूँ।

आप टाइटल से प्रभावित हुए? बेशक हुए। वरना इस पंक्ति तक तो कभी ना पहुँचते। क्या था ऐसा इस टाइटल में। लिखा था-100 प्रतिशत झूठ। तो जी ऐसा क्या था इसमें? कुछ भी तो नही। हाँ पर एक बात अजीब ज़रूर थी कि लोगों के मुँह से आज तक आपने 100 प्रतिशत सच सुना होगा, पर यहाँ तो झूठ लिखा है। बस यही एक शब्द अलग हो गया और आपका ध्यान यहीं खिंच गया। हाँ तो 100 प्रतिशत झूठ, इस विषय को क्यूँ लिया मैंने? और लिख क्या रही हूँ इस पर मैं? या आखिर लिखना क्या चाहती हूँ मैं? मैं इस बात से भली भाँति अवगत हूँ कि आपके दिमाग में ये सभी सवाल अभी धमा-चौकड़ी मचा रहे होंगे। ऐसा होना भी चाहिये।

अच्छा, तनिक ये सोचिये कि हम जिस संसार में रहते हैं, वहाँ सच बचा कितना है? साधारण-सा सवाल है। अपनी पूरी दिनचर्या में तलाश कीजिये सच को। दिन में कितनी मरतबा सच बोलते होंगे आप? जब अपनी पूरी दिनचर्या का विश्लेषण आप कर लेंगे तो यह पायेंगे कि हमारे रोज़ के रूटीन में झूठ एक पारिवारिक सदस्य की तरह शामिल हो गया है। और इसकी ये घुसपैठ इतनी गहरी है कि हम चाहें भी तो इसे बाहर नही निकाल पाते हैं।

क्या? आपको यकीन नही इस बात पर।

चलिए एक छोटा सा उदाहरण देती हूँ इस बात की सत्यता को प्रमाणित करने के लिए। मान लीजिये आपने मूवी देखने का कार्यक्रम बना लिया, आप बाहर निकलें इससे पहले ही आपके मित्र का फ़ोन आ गया! उसने पूछा कि आप कहाँ है, वो आपसे मिलने आना चाहता है या चाहती है। सच बताईये आप में से कौन कोई बहाना नही बनाएगा? और जनाब कोई बहाना बनाना भी तो झूठ बोलना ही है।

आप अभी भी सहमत नही? अच्छा एक और उदाहरण। मान लीजिये आप अपने ब्लॉग पर एक पोस्ट लिख रहे हैं, ख़्याल भी अजीब होते हैं, अभी हैं ज़हन में, तो अगले ही पल गायब। बस ऐसा ही कोई ख़्याल आपके ज़हन में भी घूम रहा है और आप जल्दी से जल्दी उसे अपनी पोस्ट में ढाल देना चाहते हैं। अचानक आपके व्हाट्स ऐप पर आपके ख़ास दोस्त के मेसेज आने शुरू। आप सब देख भी रहे हैं, पढ़ भी रहे हैं, पर ब्लॉग के पोस्ट को पूरा करना आपकी प्राथमिकता है। आप पहले पोस्ट पूरा करेंगे, फिर अपने मित्र को जवाब देंगे। और जब वो पूछेगा या पूछेगी कि इतनी देर से जवाब क्यूँ दिया आपने। तो आप एक सॉलिड सा बहाना उनकी पेश-ए-ख़िदमत कर देंगे। और मैं फिर यही लिखूँगी, बहाना भी झूठ ही है जवाब।

ऐसे अनगिनत उदाहरण मैं यहाँ लिख सकती हूँ। पर क्या फ़ायदा जिसने मेरी बात पर सहमति जतानी है वो तो एक ही उदाहरण में जता देगा। और जो मुझसे असहमत है, वो हज़ारों उदाहरणों के बावज़ूद भी असहमत ही रहेगा।

बहरहाल, ये कोई वाद-विवाद प्रतियोगिता नही। मेरे पोस्ट का टाइटल है - 100 प्रतिशत झूठ। और मेरा उद्देशय बस यही था कि मैं इस बात को दिखा सकूँ कि झूठ हमारी ज़िन्दगी में कुछ इस तरह शामिल हो चुका है कि इसकी उपस्तिथि 100 प्रतिशत के करीब हो गई है। और ऐसा किया भी मैंने। ये और बात है कि आप इससे सहमत हुए या नही।

कहते हैं-
"जिस झूठ से किसी का भला हो, वह झूठ, झूठ नही होता है।"

पर एक सच तो यह भी है कि
"झूठ सिर्फ़ झूठ ही होता है, भले ही उससे किसी का कितना भी भला क्यूँ ना होता हो।"

अश्क़


जो बह जायें तो हैं नीर,
जो दिल में रह जायें तो हैं पीर।
किसी दर्द का कभी मल्हम हैं,
तो किसी ज़ख्म की कभी चुभन हैं।
कभी दिल का हैं सुक़ून,
कभी दिल का हैं जूनून।
लबों की ख़ामोशी की आवाज़ से,
आँखों से उभरते गहरे राज़ से।
कभी राहत हैं ज़िन्दगी की,
कभी अधूरी चाहत हैं किसी की।
हैं हसरतों का ज़नाज़ा कभी,
तो कभी खुशियों की बहार हैं।
कभी हैं रिश्ता नफ़रत का,
तो कभी दिखाते प्यार हैं।
कभी ख़्वाहिशें हैं दिल की,
तो कभी दिल के ज़ज़्बात हैं।
महज़ बूंद भर हैं कभी,
तो कभी दिल की आग हैं।
बिन बात छलक आते हैं,
ग़म को छिपा जाते हैं।
अश्कों की कहानी भी अजीब है,
दूर हैं आँखों से, फिर भी करीब हैं।
है गुरेज़ किसे अश्क़ बहाने से,
डरता है कौन अश्क़ गिराने से?
ये कमज़ोरी का निशान नही,
ये मज़बूरी की पहचान नही।
ये दिल की ज़ुबान हैं,
अधूरी चाहतें, बिखरे अरमान हैं।
छलक आते हैं यूँ ही कभी-कभी,
हो ग़म का अँधेरा, या हो रोशनी ख़ुशी की।

Friday 3 April 2015

Sing the Song


Music soothes one's soul.
I completely agree with this phrase. And beside soothing humans soul music works as a medium of communication too. If you wonder how then let me explain how. Have you ever tried to answer or reply someone with the help of a song. I know you definitely would have. May be you don't remember it now. If you haven't then you can do it now. But the problem is you have to make some smarter choices because not every song suits to every situation of our life. I am not a perfectionist but still my choices are not that much bad ;-) .

So, let's begin.

1) Situation no one-: You love someone but you can't express your feelings to him/her.
मेरी आशिकी तुम ही हो...
बहुत प्यार करते हैं तुमको सनम...

2) Situation no two:- You wanna prove someone that he/she is your only love.
कोई मुझको यूँ मिला है, जैसे बंजारे को घर...
कसम की कसम है कसम से, हमको प्यार है सिर्फ तुमसे...

3) Situation no three:- You wanna have a break up then too a song can be used.
एक ऐसा लड़का था/एक ऐसी लड़की थी, जिसे मैं प्यार करती थी/करता था...
वो बेवफा है, एक बेवफा है...

4) Situation no four:- You can use a song if you wanna cuddle with someone.
कतरा, कतरा मैं गिरूँ, जिस्म पर तेरे ठहरूँ...
आज फिर तुमपे प्यार आया है, बेहद और बेशुमार आया है...

5) Situation no five:- If you wanna admire someone use a song for that.
बहुत खूबसूरत हो, बहुत खूबसूरत हो...
तुमसे अच्छा कौन है...

6) Situation no six:- You hate someone, let him/her know this by a song.
है अगर दुश्मन, दुश्मन, ज़माना ग़म नही...
अपनी तो जैसे तैसे, थोड़ी ऐसे या वैसे कट जायेगी...

7) Situation no seven:- Show your love for your family specially your mom-dad.
थोड़ी सी ख़ुशी है, थोड़ा सा है ग़म...
हम साथ-साथ हैं...

8) Situation no eight:- Let your friends know how strong is the bond of your friendship is.
यारों दोस्ती बड़ी ही हसीन है, ये ना हो तो फिर क्या ये ज़िन्दगी है...
यारा तेरी यारी, हमको तो जान से प्यारी...

9) Situation no nine:- Show your care and affection for your known ones.
आये हो मेरी ज़िन्दगी में, तुम बहार बनके...
तुम जो आये ज़िन्दगी में बात बन गई...

10) Situation no ten:- Express your love for the person you daily see in mirror i.e. yourself.
अभी मुझमें कहीं, बाकी थोड़ी सी है ज़िन्दगी...
तू जी ले ज़रा,है तुझे भी इज़ाज़त...

These situations are the product of my own thinking and are in no way related to real life. But somehow you will face them all someday in your life. And believe me if you don't find words for such situations then simply let them out with the help of songs. After all movies are inspired by real life. And songs are the incarnations of our feelings only.

So, next time if you hesitate to speak up, simply play the song which expresses you the best at that moment.

लिखने बैठे...तो सोचा...

लिखने बैठे, तो सोचा, यूँ लिख तो और भी लेते हैं, ऐसा हम क्या खास लिखेंगे? कुछ लोगों को तो ये भी लगेगा, कि क्या ही होगा हमसे भला, हम फिर कोई ब...