Monday 3 June 2019

एक प्याली चाय

एक प्याली चाय क्या कर सकती है? सोचिये। मुझे लगता है बहुत कुछ। लेकिन सिर्फ तभी जब आप चाय पीते हों। कोई वजह नही चाय पर कुछ लिखने की, बस यूँ ही मन किया तो सोचा क्यूँ ना इस एक प्याली चाय पर ही कुछ उलझे हुए रिश्तों को सुलझाया जाये, या यूँ कहिये कि ये देखा जाये कि ये एक प्याली क्या-क्या कर सकती है।

चलिये आगाज़ सुबह से करते हैं। दिन की शुरुआत और आज आप एक अलग ही रूप में हैं, रोज़ आपके लिए कोई और चाय बनाता है, मगर आज आप थोड़ा पहले उठे और आपने उनके लिये चाय बनाई, जो रोज़ आपके लिए चाय बनाते हैं, और वो कोई भी हो सकता है।

या फिर ऐसा भी हो सकता है कि आपके किसी दोस्त/सहकर्मी से आपका कोई मन-मुटाव हो गया है, अगर बन्दा/बन्दी चाय पीता/पीती है तो क्या हर्ज़ है एक प्याली चाय से इस मन-मुटाव को दूर करने में।

अच्छा ऐसा भी तो हो सकता है कि आज उन्हे वो बताते हैं जो पिछले एक महीने/एक साल से नही बताया, एक प्याली चाय की मुलाकात में क्यूँ ना एक कोशिश की जाये। हाँ रही तो शुक्रिया उस प्याली का, ना भी रही तो चाय तो पी ही लेंगे साथ में। सौदा बुरा भी नही है।

इस भागती ज़िन्दगी में हम इतने मशरूफ़ हैं कि साथ बैठकर दो पल गुफ़्तगू तक नही कर पाते हैं। चलिये क्यूँ ना आज एक चर्चा चाय पर ही हो जाये। क्या हर वक़्त खुद को रिश्तों से अलग रखना कभी-कभी उनमें उलझ कर भी देखा जाये। आख़िर कितना वक्त लेती है एक प्याली चाय? पर हाँ वक़्त देती बहुत है। यकीन ना आये तो एक कोशिश कर ही लीजिये।

शाम का वक़्त हो, बालकनी का नज़ारा हो, दूर तक दिखता हो आसमाँ और साथ में एक प्याली चाय, यहाँ आप उनसे मिल सकते हैं जिन्हें रोज़ आईने में देखते तो हैं आप पर शायद पहचान नही पाते हैं, या भूल गए हैं।

अब कहिये जनाब! क्या नही कर सकती है ये एक प्याली चाय।

"कुछ दूरियाँ, कुछ फाँसले मिटा सकती है,
ये एक प्याली चाय किसी को करीब ला सकती है...।"

Sunday 2 June 2019

कभी सोचा है?

कभी-2 लगता है कि ऐसी बहुत-सी बातें हैं जिनके बारे में हम कभी सोचते ही नही हैं। पता नही सोचते नही हैं, या समय नही होता है, या फिर सोचना ही नही चाहते हैं। जो भी है पर हम सभी की ज़िन्दगी में ऐसा बहुत कुछ है जिस पर सोचना बहुत ज़रूरी है।

जैसे -
क्या हम आज जहाँ हैं , वहाँ हम खुश हैं?
क्या हम जो हैं, हमें वही होना था, हमें वही बनना था?
क्या आज जो भी हमारे पास है, हम वही चाहते थे?
क्या हम वही ज़िन्दगी जी रहे हैं, जैसी हमने सोची थी?

ये फ़ेहरिस्त बहुत लंबी है। सवाल ऐसे हज़ारों हैं, जवाब इसीलिए नही हैं क्यूँकि हमने कभी सोचा नही, या यूँ कहिये कि हम सोचना चाहते ही नही हैं। वज़ह जो भी हो मुद्दा ये है कि आख़िर ऐसे सवाल अगर हैं भी तो क्यूँ हैं और हम इनके बारे में सोचते क्यूँ नही हैं? ज़रूरी नही कि आप मेरी हर बात से इत्तेफ़ाक रखें। हाँ पर एक बात ज़रूर है कि इनमें से कोई ना कोई सवाल आपके ज़हन में भी कहीं छिपा होगा बस या तो वो कहीं दबा है या आपने शायद उसे दबा रखा है। और अगर ऐसा नही है तो यकीन मानिये आप बहुत खुशनसीब हैं। क्यूँकि ऐसी ज़िन्दगी नसीब वालों को ही मिलती है जिनकी ज़िन्दगी में ऐसा कोई सवाल ना हो।

हाँ अगर आप इन खुशनसीबों में से नही हैं तो यकीनन ऐसा कोई ना कोई सवाल आपके ज़हन में होना चाहिए। मेरा उद्देश्य बस इस बाबत बात करना है कि क्यूँ हम ऐसे किसी सवाल को टालते हैं, उस पर गौर नही करना चाहते हैं, क्यूँ हमारे दिल और दिमाग के बीच एक अजीब-सी रंजिश है, दिल कुछ चाहता है और दिमाग कुछ? क्यूँ हम जी तो रहे हैं पर शायद ये ज़िन्दगी, ज़िन्दगी जैसी नही है? ऐसे सवालों का क्या मतलब है? मैं चाहती हूँ कि हम सभी एक बार अपनी इस भागती-दौड़ती ज़िन्दगी में से थोड़ा समय निकालें और कभी, कहीं बैठकर ये सोचें-
"क्या आज हम जहाँ खड़े हैं, हम खुश हैं?
क्या हम वहाँ हैं, जहाँ हमें होना चाहिए था...?"

यकीन मानिये अगर इन सवालों के जवाब ना में हैं तो शायद हमें ज़रूरत है अपनी ज़िन्दगी में कुछ बदलने की। हमें ज़रूरत है खुद से मिलने की, वो करने की जो हम हमेशा से करना चाहते थे, वो कहने की जो हम हमेशा से कहना चाहते थे, वो बनने की जो हम हमेशा से बनना चाहते थे। हमें ज़रूरत है उस सपने को दोबारा जीने और देखने की जिसे अपनी जिम्मेदारियों के बोझ तले हमने कहीं दबा दिया है। हमें ज़रूरत है ज़िन्दगी को जीने की।

लिखने बैठे...तो सोचा...

लिखने बैठे, तो सोचा, यूँ लिख तो और भी लेते हैं, ऐसा हम क्या खास लिखेंगे? कुछ लोगों को तो ये भी लगेगा, कि क्या ही होगा हमसे भला, हम फिर कोई ब...