Tuesday 7 April 2015

अश्क़


जो बह जायें तो हैं नीर,
जो दिल में रह जायें तो हैं पीर।
किसी दर्द का कभी मल्हम हैं,
तो किसी ज़ख्म की कभी चुभन हैं।
कभी दिल का हैं सुक़ून,
कभी दिल का हैं जूनून।
लबों की ख़ामोशी की आवाज़ से,
आँखों से उभरते गहरे राज़ से।
कभी राहत हैं ज़िन्दगी की,
कभी अधूरी चाहत हैं किसी की।
हैं हसरतों का ज़नाज़ा कभी,
तो कभी खुशियों की बहार हैं।
कभी हैं रिश्ता नफ़रत का,
तो कभी दिखाते प्यार हैं।
कभी ख़्वाहिशें हैं दिल की,
तो कभी दिल के ज़ज़्बात हैं।
महज़ बूंद भर हैं कभी,
तो कभी दिल की आग हैं।
बिन बात छलक आते हैं,
ग़म को छिपा जाते हैं।
अश्कों की कहानी भी अजीब है,
दूर हैं आँखों से, फिर भी करीब हैं।
है गुरेज़ किसे अश्क़ बहाने से,
डरता है कौन अश्क़ गिराने से?
ये कमज़ोरी का निशान नही,
ये मज़बूरी की पहचान नही।
ये दिल की ज़ुबान हैं,
अधूरी चाहतें, बिखरे अरमान हैं।
छलक आते हैं यूँ ही कभी-कभी,
हो ग़म का अँधेरा, या हो रोशनी ख़ुशी की।

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