Monday 7 January 2019

ज़हर

ये कौन कहता है,
कि ज़हर सिर्फ़
बोतल में रहता है।
कभी देखा करो चहुँ ओर,
जो मिल जाये एक भी छोर।
जिसमें नफ़रत का ये विष ना हो,
कहीं कोई बेरहम साज़िश ना हो।
लोग बेताब रहते हैं,
लड़ने को, मरने को।
बातें बेहिसाब होती हैं,
मगर द्वेष में जलने की।
कोई किसी के चरित्र पर,
उठाता है उंगली।
कोई किसी को कह देता है
तुम हो निहायत जंगली।
यूँ अपने गिरेबाँ में वैसे
झाँकता भी कौन है।
खुद को किसी से कम
आँकता भी कौन है।
सभी धुन में हैं कि
चलो इसे नीचा दिखाया जाए।
आज फिर सर-ए-आम
तमाशा उसका बनाया जाए।
वाकई कमाल के हुनरबाज़ हैं हम
नफ़रतें फ़ैलाने में लगाते हैं सारा दम।
सोचो गर इसी ज़ज़्बे से मोहब्बत को
हमने गर बिखेरा होता।
जाने कितनी अंधेरी रातों में
आज उजला सवेरा होता।
जाने किस-किस की ज़िंदगी
फिर से आबाद हुई होती।
अफ़सोस ऐसा होता नही है,
ग़म में किसी के अब कोई रोता नही है।
इंतज़ार रहता है सबको कि
अब मौका मिलेगा, तब मौका मिलेगा।
ऐसा ही चलता रहा तो,
फूल भी नफ़रत का ही खिलेगा।
कोई कहीं से तो एक शुरुआत करे,
कोई किसी से एक दरख़्वास्त करे।
कि हाँ ये एक सच है
कि ज़हर शब्दों में भी होता है,
विचारों में भी होता है।
पर एक सच ये भी है
कि अमृत भी शब्दों में ही होता है,
विचारों में ही होता है।

एक मुलाकात

कितनी खूबसूरत शाम थी वो। विक्रम को एक अलग ही खुशी अनुभव हो रही थी आज। उसने तो कभी सपने में भी नही सोचा था कि यूँ अचानक इतने सालों बाद वो रिया से मिलेगा। और देखो वो टकराये भी तो कहाँ? उसी की बिल्डिंग की लिफ्ट में। उसे तो अभी तक लग रहा था जैसे उसने कोई खूबसूरत ख्वाब देखा हो और ऐसा लगे भी क्यूँ नही आखिर रिया कॉलेज के दिनों में सभी के लिए एक खूबसूरत ख्वाब ही तो थी।

पता नही क्यूँ रिया को अचानक सामने देखकर विक्रम को क्या हो गया कि उसके मुँह से एक शब्द नही निकला। वो तो अच्छा हुआ कि रिया ने खुद ही पहल की,"हे। यू आर विक्रम ना? डू यू रिमेंबर मी?" विक्रम के मन में ख्याल आया कि कह दूँ,"डू आई रिमेंबर यू? मैं , तुम्हे भूला ही कब था?" पर किसी तरह उसने खुद को सम्भाला और रिया की बात का जवाब दिया, मगर अपने ही ढ़ंग से। "सॉरी डू वी नो ईच अदर?" रिया ने तपाक से जवाब दिया,"अरे यार हम एक ही कॉलेज में पढ़ते थे ना।" विक्रम,"अरे तुम रिया हो ना। सॉरी पहचाना नही तुम्हे।"

बस फिर जो बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो पता ही नही चला कि कब ग्राउंड फ्लोर आ गई और लिफ्ट का दरवाजा खुल गया। विक्रम को लगा जैसे किसी ने अचानक उसके सपनों के पंख तोड़ दिए हों। पर क्या कर सकते हैं लिफ्ट को तो रुकना ही था। अचानक उसे याद आया कि उसने रिया से ये तो पूछा ही नही कि वो यहाँ कैसे और क्यूँ मिली है उसे। तो अगले ही क्षण उसने रिया से पूछ लिया,"हे बाय दी वे, व्हाट आर यू डूइंग हियर?" और रिया भी मानो इसी सवाल की प्रतीक्षा में थी तो उसने कहा," अरे सॉरी बताना ही भूल गई। वो मैंने जॉब स्विच की है तो यहाँ नोएडा में जॉइन किया है। पर तुम यहाँ कैसे?" विक्रम ने तपाक से जवाब दिया,"मैं तो यहीं रहता हूँ, इसी बिल्डिंग के टेंथ फ्लोर पर।" रिया,"ओह, ग्रेट मैं और मेरी फैमिली एलेवेंथ फ्लोर पर शिफ़्ट हुए हैं। चलो अब तो मिलना-मिलाना होता रहेगा फिर।" विक्रम,"हाँ क्यूँ नही।"

और इस खूबसूरत मुलाकात को अपने ज़हन में बसाये विक्रम चल पड़ा अपने ऑफिस की तरफ। और सोचने लगा कि ये वक़्त भी कमाल की साज़िशें करता है। एक ज़माना था जब वो और रिया एक ही कॉलेज में थे और उनकी एक मुलाकात तक ना हो सकी कभी। और आज इतने सालों बाद एक बहुत ही खूबसूरत-सी मुलाकात जाने कहाँ से वक़्त ने उसके नसीब में डाल दी। एक छोटी पर यादगार मुलाकात।

लिखने बैठे...तो सोचा...

लिखने बैठे, तो सोचा, यूँ लिख तो और भी लेते हैं, ऐसा हम क्या खास लिखेंगे? कुछ लोगों को तो ये भी लगेगा, कि क्या ही होगा हमसे भला, हम फिर कोई ब...