Tuesday 31 March 2020

काश! फिर वही काश

कभी-कभी आगे बढ़ते हुए जब अचानक पीछे मुड़ कर देखते हैं तो ख़्याल आता है कि काश उस वक़्त ये ना हो कर वो हो गया होता तो शायद आज तस्वीर कुछ अलग होती ज़िन्दगी की!
बहुत मुमकिन है कि ऐसा एक कोई ख़्याल कहीं आपके मन में भी आता होगा! यूँ हर किसी को वो सब नसीब नही होता है जो भी उसने चाहा होता है अपनी ज़िन्दगी से! हाँ ये और बात है कि समझौता-सा कर लेते हैं हम वक़्त और ज़िन्दगी दोनों के साथ!
कहीं इसे पढ़ते-पढ़ते ऐसा तो नही सोचने लगे आप कि क्या फिर वही "ऐ काश!" वाली पुरानी कहानी ले कर आ गई हूँ मैं! सोच रहे हैं क्या?
हाँ, सही सोच रहे हैं आप!
क्या करूँ, मैं गलत भी तो नही हूँ! बताईये ऐसा कौन ही होगा जिसने ज़िन्दगी में ज़्यादा ना सही पर कम से कम एक बार तो पीछे मुड़ कर ज़रूर देखा होगा और सोचा होगा कि क्या होता अगर उस वक़्त ये हो गया होता, या वो मिल गया होता, या फिर वो फैंसला ना लिया होता या उससे अपने दिल की बात कह दी होती या वक़्त रहते वो सब कर लिया होता जो करने का मन था!
बताईये होगा क्या कोई ऐसा?
अच्छा अगर सच में ऐसा कहीं कोई है ना तो कसम से किस्मत का धनी है वो!
वैसे कोई ज़रूरी नही कि आप मेरी हर बात से सहमत हों! विचार मेरे हैं पर सोच आपकी अपनी है! इच्छुक हों तो पढ़ते रहें और हाँ कभी-कभी आलोचनात्मक ही सही पर अपने विचार भी देते रहें!
कहीं ऐसा ना हो कि कल आप ये कहें,"काश! कुछ तो लिख दिया होता, काश! कुछ तो कह दिया होता!"

चलिए अब विराम देते हैं इस काश को,
"मुड़ कर देखा पीछे मैंने भी,
देखा कि कहीं कुछ कमी है क्या,
यूँ खुश हूँ आज बहुत,
पर फिर अचानक लगा
कि
काश!
अगर वो हो गया होता
तो आज ये ना होता,
और
फिर ख़्याल आया
कि
अगर वो ना हुआ होता
तो फिर
ये भला कैसे होता...?"

लिखने बैठे...तो सोचा...

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