अँधेरे रास्तों में,
बनके रोशनी-सी।
फीके जीवन में,
घुलके चाशनी-सी।।
कभी मंज़िल के निशाँ,
कभी दिल के अरमाँ।
कभी कोई ख़्वाब,
कभी कोई जवाब।।
टूटते को जोड़ गई,
भरम को तोड़ गई।
बिखरते को समेट गई,
ख्यालों में लपेट गई।।
चाहतों को ज़िंदा करके,
मुश्किलों को शर्मिन्दा करके।
हौंसलों को सख़्त करके,
सर्द रातों को तप्त करके।।
तन्हाईयों में दोस्त जैसी,
बेचैनियों में राहत जैसी।
दर्द में मलहम जैसी,
दिल की धड़कन जैसी।।
निराशाओं से उभारती,
ज़िन्दगी को सँवारती।
गिरते को सम्भालती,
हर डर से निकालती।।
अधूरी ज़िन्दगी में,
पूरी ज़िन्दगी ले आई।
ये आशायें ज़रा देखो तो,
बनके क्या-क्या ना आई।।
Tuesday 18 August 2015
आशायें...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
लिखने बैठे...तो सोचा...
लिखने बैठे, तो सोचा, यूँ लिख तो और भी लेते हैं, ऐसा हम क्या खास लिखेंगे? कुछ लोगों को तो ये भी लगेगा, कि क्या ही होगा हमसे भला, हम फिर कोई ब...
-
कभी-कभी आगे बढ़ते हुए जब अचानक पीछे मुड़ कर देखते हैं तो ख़्याल आता है कि काश उस वक़्त ये ना हो कर वो हो गया होता तो शायद आज तस्वीर कुछ अलग होती...
-
कहते हैं जननी से धन्य ना कोई हो सका है और ना ही कभी होगा। एक माँ जो अपने बच्चे को अपने ही रक्त से सींचती है, उसे अपने ही शरीर का हिस्सा देक...
-
कभी-कभी हम जब अकेले बैठ कर अपनी ज़िन्दगी के पन्नों को पलटते हैं, तो हमारे ज़हन में ये ख़्याल उमड़ते हैं कि शायद उस दिन, उस वक़्त, उस लम्हे में अग...
आपकी इन आशाओं ने कितनों की नैया पार की है.. :)
ReplyDelete"जी अगर एक भी इंसान को इससे प्रेरणा मिली होगी तो मैं समझूँगी कि मेरी लेखनी सही दिशा में जा रही है...!" 😊
Delete