Friday 1 August 2014

सुलझती उलझनें...एक लघु प्रेम कथा...


"धैर्य, सिर्फ नाम धैर्य होने से कुछ नही होता है, थोड़ी तो इज्ज़त रखो अपने नाम की यार." साहिल ने धैर्य को समझाते हुए कहा.
धैर्य जो अपनी ज़िन्दगी में इतनी नाकामी देख चुका था कि अब उसे किसी जीत की कहीं कोई आस नजर नही आ रही थी. वो चुपचाप बैठा साहिल की बातें सुन कर अनसुनी कर रहा था.
तभी साहिल ने उसका हाथ खींचते हुए कहा," चलो थोड़ा घूम कर आते हैं, तुम्हारा मन ठीक हो जाएगा."
ना चाहते हुए भी, धैर्य उठा और खुद को खींचते हुए चल पड़ा साहिल के पीछे-पीछे.
इतने सालों की मेहनत के बाद भी यू पी एस सी की परीक्षा की पहली सीढ़ी यानि कि प्राथमिक परीक्षा भी पास नही कर पाया था वो. उस पर उसके पापा का उस पर यकीन. हर बार की तरह इस बार भी जब उसने अपनी नाकामी की खबर अपने पापा को दी तो उन्होने बस यही कहा,"बेटा, पिछला सब भूल जाओ, आगे आने वाले पर ध्यान लगाओ." वो जानते थे कि अभी धैर्य के पास एक साल और एक अटेम्प्ट और बचा था इस परीक्षा के लिए.
इन्ही सब ख्यालों में उलझा हुआ, धैर्य चले जा रहा था साहिल के पीछे-पीछे कि अचानक वह किसी से टकरा गया.
"देख कर नही चल सकते क्या...?" एक लड़की ने खुद को सम्भालते हुए और अपनी किताबें उठाते हुए कहा.
एक पल के लिए धैर्य कुछ समझ नही पाया, फिर अचानक होंश में आते हुए बोला,"माफ़ कीजियेगा मेरा ध्यान कहीं ओर था."
जैसे ही लड़की ने ऊपर देखा वह आश्चर्य से चिल्लाई,"अरे धैर्य तुम."
धैर्य थोड़ा घबरा गया.
उसे इस तरह घबराया देख लड़की ने पूछा,"अरे घूर क्या रहे हो, पहचाना नही, मैं आस्था, सुधा की दोस्त, तुम सुधा के कमरे पर आये थे एक बार, तब मिले थे हम."
अब धैर्य को याद आया कि वो लड़की उसकी एक्स गर्ल फ्रेंड की रूम पार्टनर थी.
धैर्य नही चाहता था कि इस वक़्त वो अपने कल की किसी भी कड़ी से दोबारा जुड़े, सो उसने वहाँ से निकलना ही ठीक समझा और बोला,"आस्था तुमसे मिल कर अच्छा लगा, मैं जरा जल्दी में हूँ, माफ़ करना."
लेकिन आस्था शायद कुछ कहना चाहती थी, धैर्य के उस रूखे से व्यवहार को देख वह बोली,"मैं जानती हूँ तुम दोनों के बीच जो हुआ, पर."
इससे पहले कि वो और कुछ कहती, धैर्य बोला,"मैं चलता हूँ."
आस्था बस देखती रही और अपने रास्ते मुड़ गई.
इस एक मुलाक़ात ने धैर्य की तकलीफ को और बढ़ा दिया था. वो लौट जाना चाहता था पर फिर उसे साहिल का ख्याल आया, जो उसके इंतज़ार में खड़ा था. और धैर्य चल पड़ा अपने दोस्त का साथ देने उसके पास.
परिणाम को घोषित हुए दो महीने हो चुके थे, और धैर्य अभी भी अपनी असफलता के दर्द से निकल नही पाया था, आखिरी साल और आखिरी मौका क्या होगा अगर इस बार भी मैं पहली सीढ़ी से ही गिर गया तो, ये बात कहीं ना कहीं उसे खा रही थी.
तभी साहिल खाने के डिब्बे लाया और बोला जल्दी से लंच करो आज एक डेमो क्लास है शर्मा सर की कोचिंग में, फीस भी कम है उनकी, चलो एक बार चल कर देख लेते हैं.
लेकिन धैर्य का तो जैसे धैर्य ही खत्म हो चुका था," मैं किसी कोचिंग-वोचिंग में नही जा रहा हूँ, तुमको जाना है जाओ."
साहिल ने धमकी भरे अंदाज़ में कहा,"देख यार बहुत हुआ तेरा नाटक, पिछले दो महीने से पता नही किस बात की सजा दे रहा है खुद को, ना बाहर निकलता है, ना किसी से बात करता है, ना घर ही जा रहा है, क्या, प्रोब्लेम क्या है तेरा, तू ही अकेला है जो फेल हुआ है, यार यू पी एस सी पर दुनिया खत्म नही हो जाती है और बहुत कुछ है करने को ज़िन्दगी में, फिर तेरे पास एक साल और एक मौका है, क्यूँ दिमाग खराब कर रहा है अपना भी और हम सब का भी.अब या तो चुप चाप चल, नही तो साले उठा के ले जाऊँगा तुझे."
"साले तू उठाएगा मुझे, सिंगल हड्डी, तू पहले खुद को तो उठा ले." धैर्य ने साहिल को मस्ती में पीटते हुए कहा.
चार बज चुके हैं, धैर्य और साहिल, शर्मा सर की कोचिंग क्लास में बिल्कुल पीछे की सीटों पर बैठे आने-जाने वालों का मुआयना कर रहे हैं. तभी साहिल किसी की ओर इशारा करते हुए धैर्य के कान में फुसफुसाते हुए कहता है,"अबे वो पिंक सूट वाली वही है ना जिससे उस दिन मार्किट में टकराया था तू."
धैर्य देख कर अनदेखा करते हुए कहता है,"पता नही, तू चुप बैठ, सारा टाइम बक-बक मत किया कर."
तभी शर्मा सर क्लास में प्रवेश करते हैं,"गुड मोर्निंग एवरीवन."
शर्मा सर बिना समय गवायें अपनी बात शुरू करते हैं,"वेलकम एवरीबॉडी, आप सभी आज एक उम्मीद लेकर इस डेमो क्लास में आयें हैं, साथ ही आप सभी ये भी सोच रहे होंगे कि आखिर मैं आपको क्या नया करवा सकता हूँ जो औरों से अलग होगा और आपको कामयाबी दिलवायेगा, वेल आपका सोचना बिल्कुल सही है..............."
धैर्य ना जाने किस सोच में डूबा था कि शर्मा सर की डेमो क्लास कब खत्म हुई उसे पता भी नही चला.
आमतौर पर हर कोचिंग सेंटर डेमो क्लास में आने वाले स्टूडेंट्स के नाम और फ़ोन नंबर लिखवाता है, सो अब भी यही हुआ.क्यूँकि आस्था आगे बैठी थी तो लिस्ट में उसका नाम पहले था, लेकिन उसने नंबर नही लिखा था. लिस्ट हाथ में आते ही सहिल बोला,"उस लड़की का नाम आस्था है ना, चल उसका फ़ोन नंबर देखते हैं."
"हमको क्या लेना, छोड़ ना, अपना और मेरा नाम लिख और चल." धैर्य ने बेमन से कहा.
उसके बाद सारे स्टूडेंट्स वहाँ से जाने लगे.
आस्था अपनी सहेली के साथ अपने हॉस्टल की ओर जा रही थी और इत्तेफ़ाक ये हो रहा था कि धैर्य और साहिल के हॉस्टल का रास्ता भी उसी ओर था.
"अबे ये तो हमारे हॉस्टल के सामने वाले गर्ल्स हॉस्टल में रहती है." साहिल ने ख़ुशी से झूमते हुए कहा.
"तो तू क्यूँ उछल रहा है?" धैर्य ने उसे हॉस्टल के गेट के भीतर खींचते हुए कहा.
आस्था जैसे ही अपने हॉस्टल के गेट में घुसी उसने पलट कर देखा और ना जाने क्यूँ पर उसी वक़्त धैर्य ने भी पलट कर आस्था के हॉस्टल के गेट की ओर देखा. एक सेकंड के लिए दोनों की नज़रें मिली और फिर दोनों अपने-अपने कमरों की ओर चल दिये.
सुबह के आठ बज गये थे और धैर्य हिन्दू अखबार और चाय लिए अपनी बालकनी में बैठा था, तभी उसकी नजर आस्था के हॉस्टल की बालकनी पर पड़ी, जहाँ एक लड़की ज़मीन पर बैठी थी, शायद किसी योगासन की मुद्रा में थी, जैसे ही वह खड़ी हुई तो धैर्य ने देखा वो आस्था ही थी. उसने अपने बाल ढीले किये, और बालकनी में खड़ी हो गयी, अचानक उसके फ़ोन की घंटी बजी और वह फ़ोन सुनने लगी. इस तीसरी मुलाक़ात में शायद यह पहली बार था जब धैर्य ने उसे इतने गोर से देखा था. एक साधारण सी लड़की, साधारण से नैन-नक्श, लम्बे बाल, और खिलखिलाती, मुस्कुराती हुई. वो उसे एकटक देखे जा रहा था. अचानक आस्था की नजर धैर्य की बालकनी पर पड़ी, धैर्य के यूँ घूरने से उसे थोड़ा अजीब लगा, वो समझ नही पाई कि क्या करे इसलिये उसने आनन-फानन में धैर्य को हाथ हिला कर हेल्लो कह दिया.अब धैर्य को होंश आया और सिवाय पलट कर हेल्लो कहने के कोई चारा उसे भी नजर नही आया तो उसने भी हाथ हिला कर हेल्लो कह दिया और मुस्कुरा दिया.
करीब एक हफ्ते बाद आस्था शाम के वक़्त चाय बनाने के लिए ढूध लेने दुकान पर आई, धैर्य वहाँ खड़ा होकर सिगरेट पी रहा था, आस्था को देख उसने अपना सिगरेट बुझा दिया. दूध लेने के बाद आस्था जाने लगी, फिर अचानक पलटी और धैर्य के पास आकर बोली,"अच्छा किया जो सिगरेट बुझा दी, वैसे भी धूम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है."
"अरे मैं चैन स्मोकर नही हूँ, वो तो बस जब टेंशन होती है तब......" धैर्य ने बहाना बनाया.
"टेंशन तो मुझे भी होती है, पर मैं तो नही पीती सिगरेट." आस्था ने हँसते हुए कहा.
"तुम बहादुर हो यार, मैं कमज़ोर हूँ." धैर्य ने उसे समझाते हुए कहा.
"तुमसे ज्यादा तो नही." आस्था ने एकदम से ऐसा कहा तो धैर्य को थोड़ा अजीब लगा.
"ऐसा क्यूँ कह रही हो?" धैर्य ने आस्था से पूछा.
"मैं जानती हूँ तुम्हारे और सुधा के बीच क्या हुआ, यार बुरा मत मानना पर मैं शुरू से जानती थी कि सुधा को तुमसे प्यार नही था, पर मैं ये सब कैसे बताती तुम्हे, और कौन-सा तुम मेरी सुनते, प्यार अंधा होता है जानते हो ना?"
"अंधा ही नही गूँगा और बहरा भी होता है." धैर्य ने उसकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.
"तुम अभी भी उसे बहुत याद करते हो ना?" आस्था ने पूछा.
"धोखा इतनी जल्दी भुलाया नही जा सकता." धैर्य ने आह भरते हुए कहा.
"जानती हूँ, इस दर्द से गुज़र चुकी हूँ मैं भी." आस्था ने उदास होते हुए कहा.
"क्या तुमने भी." धैर्य ने पूछा.
"हाँ मैंने भी प्यार में धोखा खाया है, मेरे चाहने वाले को मुझसे ज्यादा मेरी दोस्त पसंद थी." उसने हँसते हुए कहा.
"और मेरी चाहने वाली को मुझसे ज्यादा कामयाबी पसंद थी." धैर्य ने पलट कर कहा.
दोनों खूब हँसे और बातें करते-करते अपने होस्टल्स की ओर बढ़े.
कहते हैं दो टूटे दिल जब जुड़ते हैं तो उनका मेल बड़ा मजबूत हुआ करता है.शायद ऐसा ही कुछ अब भी होने वाला था.करीब एक घंटे तक ऐसे ही बातें करते हुए वक्त बीत गया. तभी धैर्य ने कहा,"मेरा आखिरी एटेम्पट बचा है और मैं यहाँ खड़ा गप्पें मार रहा हूँ."
तभी आस्था ने कहा,"तो मेरे क्या चारों बचे हैं, मेरा भी आखिरी ही है."
"अरे ऐसे कैसे, इतनी जल्दी क्यूँ दे दिए सारे एटेम्पट, गैप दे देती थोड़ा." धैर्य ने आस्था को समझाते हुए कहा.
"अरे हर साल गैप दिया है."आस्था ने जवाब दिया.
"क्या कह रही हो, उम्र क्या है तुम्हारी?" धैर्य को मानो कोई झटका लगा हो.
"29." आस्था ने जवाब दिया.
"ओह माय गॉड,तुम तो यार 25 की दिखती हो, कसम से." धैर्य ने हैरान होते हुए कहा.
"थैंक्यू, सब यही कहते हैं." आस्था ने खुश होते हुए कहा.
"तो तैयारी कैसी चल रही है तुम्हारी, वो शर्मा सर की कोचिंग ज्वाइन कर ली तुमने?" धैर्य ने बात को पढ़ाई की तरफ घुमाया.
"नही यार, सेल्फ स्टडी जिंदाबाद." आस्था ने बड़े विश्वास से जवाब दिया."
"बढ़िया है, वैसे मैं भी सेल्फ स्टडी ही कर रहा हूँ." धैर्य ने कहा.
अपने हाथ पर बंधी घड़ी की ओर देखते हुए आस्था ने कहा,"चलो बहुत देर से खड़े हैं हम दोनों, अब चलते हैं."
"हाँ यार सच बहुत देर हो गई." धैर्य ने भी अपनी घड़ी की ओर देख कर कहा.
और आस्था अपने हॉस्टल के गेट की तरफ मुड़ने लगी.
"सुनो आस्था?" धैर्य ने कहा.
"अगर तुम्हे कोई एतराज़ ना हो तो क्या तुम अपना फ़ोन नंबर दे सकती हो मुझे?"धैर्य ने थोड़ा सोच कर पूछा.
"हाँ हाँ, मैं नंबर देती हूँ तुम मिस कॉल कर दो, मेरा मोबाइल ऊपर मेरे कमरे में है." आस्था ने धैर्य को नंबर देते हुए कहा.
और दोनों अपने-अपने होस्टल्स के गेट्स से अंदर चले गए.
दिन बीतने लगे और धैर्य और आस्था की दोस्ती भी बढ़ने लगी.अब वो दोनों पढ़ाई में एक दूसरे का साथ देने लगे, एक साथ पढ़ने लगे, नोट्स शेयर करने लगे.
एक दिन दोनों पार्क में बैठे पढ़ रहे थे की धैर्य ने पूछा,"अच्छा आस्था तुम्हे डर नही लगता अगर इस बार भी फेल हो गई तो?"
आस्था ने जवाब दिया,"बिल्कुल लगता है, तुम्हारी तरह मेरा भी आज तक पी टी भी पास नही हुआ है, पर यार ऐसे डरते रहेंगे तो भी क्या होगा?"
"अच्छा सुनो तुम पर शादी के लिए दबाव नही है घरवालों की तरफ से?" धैर्य ने पूछा.
"यार सच बोलूँ तो नही क्यूँकि मैं अपने घर में सबसे बड़ी हूँ और मुझ पर ज़िम्मेदारी बहुत है, हम इतने अमीर नही हैं यार."
आस्था ने दुखी मन से कहा.
"तो मैं क्या टाटा या अम्बानी की औलाद हूँ." धैर्य ने हँसते हुए कहा.
"हर बात का मजाक मत उड़ाया करो." आस्था ने गुस्से में कहा.
"अच्छा यार सॉरी."धैर्य ने माफ़ी माँगी.और कहा,"वैसे तुम अपनी शादी की टेंशन मत लो, इतनी अच्छी हो तुम कि कोई आँख बंद करके भी हाँ कह देगा."
"यहाँ तो लोग खुली आँखों से भी पसंद नही करते,पहले सपने दिखाते हैं और फिर छोड़ जाते हैं.और तुम कहते हो कि........."उसने भरी आवाज़ में कहा.
"यार ऐसा मत बोलो, जानती हो अगर तुम हाँ करो तो मैं कसम से अपनी पूरी ज़िन्दगी तुम्हारे साथ बिता सकता हूँ." धैर्य ने एकदम से कहा.
"क्या बोल रहे हो? कुछ भी."आस्था ने हैरान होते हुए कहा.
"सच कह रहा हूँ." धैर्य ने उसे यकीन दिलाने की कोशिश की.
"ऐसी बातों पर मुझे मजाक पसंद नही." आस्था ने गुस्से में कहा.
"ऐसी बातों पर मजाक करना मुझे पसंद नही." धैर्य ने कहा.
"कहीं तुम ये तो नही सोच रहे कि हम दोनों एक साथ घूमे फिरें और मजे करें जैसे बाकी कपल्स करते हैं?" आस्था ने पूछा.
"आस्था इश्क-मुश्क की उम्र नही है ये और मैं सीरियस हूँ, ये अफेयर तो हम दोनों ही करके देख चुके हैं,क्या हाँसिल हुआ बोलो, मैं शादी, ज़िन्दगी भर के साथ की बात कर रहा हूँ." धैर्य की बातों में एक सच था.
"लेकिन...."आस्था ने उसे रोकते हुए कहा.
"मैं नही कहता मेरे साथ घूमो-फिरो, मजे करो, हम अच्छे दोस्त हैं वही रहेंगे और मेरा वादा है कि मैं तुम्हे ऐसा कुछ भी महसूस नही होने दूँगा जिससे तुम्हे लगे कि मैं तुम्हे एक दोस्त नही एक गर्ल फ्रेंड की तरह ट्रीट कर रहा हूँ." धैर्य ने आस्था को समझाते हुए कहा.
आस्था ने हाँ में गर्दन हिलाते हुए सहमती दिखाई.
"तो ये तय रहा कि रिजल्ट आते ही मैं सबसे पहले तुम्हारे पापा से तुम्हारा हाथ माँगने आऊँगा." धैर्य ने उसकी और हाथ बढ़ाते हुए कहा.
"मैं इंतज़ार करूंगी, देखती हूँ कब तक साथ दोगे." आस्था ने हाथ मिलाते हुए कहा.
और दोनों फिर से पढ़ाई में लग गए.
दिन बीतते गए. प्राथमिक परीक्षा हुई, और उम्मीद से बहुत ऊपर धैर्य और आस्था की मेहनत रंग लाई, दोनों पी टी में पास हो गए, मैन्स की परीक्षा के वक़्त दोनों एक-दूसरे से ठीक से मिल ना सके, पर फ़ोन पर बात करते हुए अपनी पढ़ाई को बिना नुक्सान पहुँचाये अपनी दोस्ती को बनाये रखा. आख़िरकार मैन्स की परीक्षा के बाद दोनों को मिलने का वक़्त मिला.
"तुम्हारे पेपर्स कैसे गए?" आस्था ने धैर्य से पूछा.
"यार उम्मीद से काफी अच्छे गए हैं, अब बस रिजल्ट आये तो कुछ पता चले." धैर्य ने जवाब दिया और पूछा,"तुम बताओ तुम्हारे तो पक्का मस्त गए होंगे?"
"यार अब क्या बोलूँ, रिजल्ट आने दो." आस्था ने जवाब दिया.
"यार चलो आज कहीं घूम कर आते हैं, मैं पक गया हूँ पढ़ते-पढ़ते." धैर्य ने आस्था से पूछा.
"हाँ यार, चलो ना इंडिया गेट चलते हैं?" आस्था ने पूछा.
"क्या आईडिया है, चलो तुम तैयार हो जाओ, मैं निकलने से पहले कॉल करूँगा, तुम नीचे आ जाना." धैर्य ने कहा.
"ठीक है." ये कहते हुए आस्था अपने हॉस्टल की तरफ चली गई.
शाम के 5 बज चुके थे और धैर्य, आस्था के साथ इंडिया गेट जाने के लिए मेट्रो में बैठ चुका था. शाम होने की वजह से मेट्रो में भीड़ बहुत थी, पर इतने दिनों की पढ़ाई के बाद थोड़ी मस्ती के लिए इतना तो सहा ही जा सकता था. इंडिया गेट पहुँचते ही सबसे पहले दोनों ने अमर जवान ज्योति को सलाम किया, फोटो खींची, गोलगप्पे खाए फिर अंधेरा होते ही वहाँ के एक पार्क में जा कर बैठ गए. दोनों काफी देर तक चुपचाप बैठे आस-पास देखते रहे. फिर धैर्य ने आस्था की तरफ देखकर पूछा," तो?"
"तो?" आस्था ने पलट कर पूछा.
"तो क्या फैंसला है तुम्हारा?" धैर्य ने फिर पूछा.
"किस बारे में?" आस्था ने फिर पूछा.
"अरे यार, मुझसे शादी करोगी कि नही?" धैर्य ने कहा.
"यार मैंने जवाब दिया तो था?"आस्था ने थोड़ा झल्लाते हुए कहा.
"क्या मैं तुम्हे पसंद नही हूँ?" धैर्य ने पूछा.
"नही ऐसा नही है, बल्कि मैं तो तुम्हे पहले ही दिन से पसंद करती हूँ, जिस दिन तुम्हे मैंने सुधा के साथ देखा था, मुझे तुम बहुत अच्छे लगे थे." आस्था ने उसे समझाया.
"फिर क्या बात है?" धैर्य ने अपना धैर्य खोते हुए पूछा.
"कोई बात नही है धैर्य बस मैं चाहती हूँ कि हम इंटरव्यू और फाइनल रिजल्ट का वेट करें." आस्था ने कहा.
"ओह मतलब तुम भी सुधा की तरह एक नाकामयाब इंसान के साथ ज़िन्दगी नही बिताना चाहोगी." धैर्य ने उदासी भरे स्वर में कहा.
"मैंने ऐसा बिल्कुल नही कहा, और तुम मुझे समझ ही क्या पाए हो जो मेरे बारे में ऐसा सोच रहे हो, ऐसा होता तो मैं तुमसे दोस्ती तो दूर बात तक नही करती, हद करते हो तुम भी." आस्था ने गुस्से में उठते हुए कहा.
"सुनो तो सही." धैर्य ने खड़े होकर आस्था का हाथ पकड़ कर उसे अपने करीब लाते हुए उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उसकी आँखों में देखते हुए कहा,"आस्था मैं तुमसे प्यार करता हूँ, और ये प्यार किसी सांत्वना या मजबूरी से नही जन्मा है, ये वक़्त के साथ धीरे-धीरे पनपा है और बढ़ा है."
आस्था सिर्फ उसकी आँखों में देखती रही और रोती रही.और धैर्य अपने दिल के ज़ज्बात उघाड़ कर उसके सामने रखता गया. "आई रियली लव यू यार."धैर्य ने अपनी बात खत्म की.
"धैर्य मैं जानती हूँ तुम झूठ नही बोल रहे हो, लेकिन समझने की कोशिश करो, मुझ पर और तुम पर बहुत ज़िम्म्मेदारियाँ हैं, पहले कुछ बन जाने दो, फिर जब कहोगे, जहाँ कहोगे और जिस हाल में कहोगे मैं तुमसे शादी कर लूँगी." आस्था ने उसे समझाने की कोशिश की.
"वादा, इंतज़ार करोगी ना मेरा, किसी और की तो नही हो जाओगी ना?" धैर्य ने उसका चेहरा अपने हाथों में लेकर पूछा.
"अपनी शादी के दिन अपना पहला फेरा शुरू होने से पहले तक करूँगी तुम्हारा इंतज़ार, ये वादा है मेरा." आस्था ने उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा.
धैर्य ने उसके हाथ पर हाथ रखते हुए आँखों-आँखों में जैसे उसके वादे पर ऐतबार कर लिया था.
फिर दोनों लौट चले अपने होस्टल्स की ओर.
कई महीने बीत गए मैन्स का रिजल्ट आया और धैर्य और आस्था की मेहनत फिर रंग लाई, अब उन दोनों को कामयाबी की आखिरी सीढ़ी पर चढ़ना था वो थी इंटरव्यू की सीढ़ी.
आख़िरकार निश्चित तिथियों पर दोनों के साक्षात्कार भी हो गए और दोनों अपने-अपने इंटरव्यू के बाद अपने घरों को लौट गये, क्यूँकि ये दोनों का ही आखिरी एटेम्पट था तो अब दिल्ली में रहने के लिए कोई वजह भी नही थी, सिर्फ इंटरव्यू के परिणाम का इंतज़ार था अब तो.
और आखिरकार वो दिन भी आ ही गया.
धैर्य को दिल्ली आये सिर्फ एक हफ्ता ही हुआ था और दस दिन से उसकी आस्था से कोई बात भी नही हो पाई थी, उस पर ये रिजल्ट. उसकी हिम्मत नही हो रही थी कि अकेले वो अपना रिजल्ट देखे.तभी अचानक साहिल दौड़ता हुआ आया और धैर्य को अपनी बाहों में उठा कर चिल्लाने लगा," दिल खुश कर दिया यार तूने, साले आई ए एस हो गया बे तू."
जैसे ही साहिल ने धैर्य को नीचे उतारा, धैर्य के पाँव हिलने लगे, वो खुद को सम्भाल नही पा रहा था, उसकी आँखों से आँसू छलके जा रहे थे.
"क्या...क...कितना रैंक आया है मेरा?" धैर्य ने काँपती आवाज़ में साहिल से पूछा.
"63, आई ए एस मिलेगा पक्का." साहिल ने उसे अपनी बाहों में भरते हुए कहा.
तभी अचानक धैर्य के फ़ोन की घंटी बजी." आस्था का फ़ोन है, यार पता नही उसका क्या हुआ होगा?" धैर्य थोड़ा डर गया.
"अबे साले उसका भी हो गया है, और तुझसे 9 रैंक ऊपर मिला है उसे, 54 रैंक है उसका." साहिल ने धैर्य के गाल खींचते हुए कहा.
"बधाई हो मैडम, आपने तो हमको भी पीछे छोड़ दिया." धैर्य ने फ़ोन उठाते हुए कहा.
"हेल्लो धैर्य, बधाई हो." दूसरी तरफ से आवाज़ आई.
ये आवाज़ आस्था की नही थी, पर जानी-पहचानी थी, किसकी आवाज़ है ये, धैर्य ने जैसे ही याद करने की कोशिश की उसके चेहरे के रंग ही बदल गए,"ये तो...ये तो...सुधा."
"सुधा बोल रही हूँ, पहचाना नही क्या? इतनी जल्दी भूल गए." सुधा ने ताना मारते हुए कहा.
"नही...नही ऐसा नही है, शुक्रिया, कैसी हो?" धैर्य ने खुद को सम्भालते हुए पूछा.
"मैं ठीक हूँ आई ए एस धैर्य." सुधा ने मजे लेते हुए कहा.
ना जाने क्यूँ पर अब सुधा से बात करने का धैर्य का बिल्कुल मन नही था, वो तो बस आस्था की आवाज़ सुनना चाहता था, उसे बाहों में भरना चाहता था. तभी सुधा बोल उठी," सुनो जरा अपने कमरे से नीचे तो आओ मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ, जल्दी आओ."
ये कह कर सुधा ने फ़ोन काट दिया.
"अब क्यूँ मिलना है इसे मुझसे, अब क्या बचा है, आखिर किसलिये?" इसी उधेड़ बुन में धैर्य नीचे गेट तक आ गया. और सामने से सुधा और आस्था को आते देखा.वो सिर्फ आस्था को देख रहा था, और आस्था उससे नजरें चुरा रही थी.उसके रुकते ही सुधा ने उसे गले से लगा लिया और कहने लगी,"मैं तुम्हे कामयाब देख कर बहुत खुश हूँ, मुझे पता था एक दिन तुम ज़रूर कुछ कर दिखाओगे. सुनो प्लीज पिछली सारी बातें अब भूल जाओ, मुझे माफ़ कर दो, वैसे भी देखो ना मेरा तुमसे अलग होना कितना लकी साबित हुआ तुम्हारे लिए, तुम कामयाब हो गए." ये कह कर उसने फिर से धैर्य को गले लगा लिया.
अब आस्था के लिए वहाँ खड़ा होना मुश्किल हुआ जा रहा था."तुम दोनों बातें करो मैं पापा को फ़ोन करके आती हूँ." उसने मुड़ते हुए कहा.
"थैंक्स आस्था, आज तुम्हारी वजह से मैं धैर्य के फिर से करीब हूँ." सुधा ने कहा.
"रुको, क्या मतलब क्या है तुम्हारा?" धैर्य ने खुद को सुधा से छुड़वाते हुए कहा. "आस्था रुको." उसने भाग कर आस्था का हाथ पकड़ा.
"ये सब क्या है, आस्था? तुम अच्छी तरह जानती हो मैं तुमसे और सिर्फ तुमसे प्यार करता हूँ, फिर ये सब?" उसने आस्था के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए कहा.
"ओह तो ये बात है आस्था, मेरी दोस्त होकर मेरे ही प्यार पर कब्जा.क्या बात है. शर्म नही आती तुमको." सुधा ने ताली बजाते हुए आस्था को ताना मारा.
"शट अप सुधा, कौन-सा प्यार, कैसा प्यार?" धैर्य के सब्र का बाँध अब टूट चुका था.
"धैर्य तुम जानते नही हो इसकी नजर शुरू से तुम पर थी, मैं ही समझ नही पाई." सुधा ने रोते हुए कहा.
"अपनी बकवास बंद करो सुधा, इसने तो आज तक मुझसे नही कहा कि ये मुझसे प्यार करती है, मैं करता हूँ इससे प्यार. और तुम कौन से प्यार की बात कर रही हो, जो सिर्फ इंसान की कामयाबी से प्यार करे वो प्यार का मतलब भी क्या जानता होगा." धैर्य ने आस्था का हाथ पकड़ते हुए कहा,"ये वो लड़की है जिसने उस वक़्त मेरा साथ दिया जब मुझे सहारे की सच में ज़रुरत थी, तब तुम कहाँ थी, तब तो मैं एक निकम्मा लड़का था ना तुम्हारे लिए, तुमने ही कहा था ना कि यू पी एस सी मेरे बस की बात नही है?" धैर्य ने कहा.
"लेकिन धैर्य, मैंने कहा ना मुझसे गलती हो गई." सुधा ने फिर रोने का नाटक किया.
"गलती? वाह क्या बात है.पर माफ़ करना इस गलती की कोई माफ़ी नही है मेरे पास,और वैसे अब तुम्हारे लिए मेरे मन में कुछ भी नही है, ना नफरत ना प्यार, तुम्हारी बधाई के लिए शुक्रिया, मिलकर अच्छा लगा बाय." धैर्य ने ये कहकर मुँह फेर लिया.
"पर धैर्य." सुधा ने फिर कोशिश की. और कोई रिस्पांस ना मिलने पर उसने चलना ही ठीक समझा.
"रुको सुधा." आस्था ने सुधा का हाथ पकड़ते हुए कहा.
"नही आस्था रहने दो, अब सब खत्म हो गया है." सुधा ने हाथ छुड़वाते हुए कहा.
आस्था सुधा को जाते हुए देखती रही और धैर्य बिना किसी पछतावे के दूसरी ओर मुँह करके खड़ा रहा.शायद आज उसकी और आस्था की ज़िन्दगी की सबसे बड़ी उलझन सुलझ चुकी थी.
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द्वारा
मंजीत पालीवाल

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