Thursday 29 January 2015

आँखें भर आती हैं मेरी भी

नंगे बदन, रोटी को तरसते,
भीगी आँखें लिये बिलखते।
फूल से मुरझाते बचपन को देख,
आँखें भर आती हैं मेरी भी।।

एक वक़्त की रोटी के लिये मरते,
परिवार की सलामती के लिये डरते।
मायूस, मज़बूर उस बाप को देख,
आँखें भर आती हैं मेरी भी।।

जवान बेटे पे खुद को बोझ समझके,
बाँटती दर्द, पति की तस्वीर से लिपट के।
लाचार, बेबस उस बूढ़ी माँ को देख,
आँखें भर आती हैं मेरी भी।।

2 comments:

  1. बहुत ख़ूब ,दिल को छू गयी

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    1. "जी शुक्रिया...!" :-)

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