Thursday 12 February 2015

आख़िर गलती किसकी???

हम जिस समाज में रहते हैं, हमारी सोच भी उसी के अनुसार पनपती और बढ़ती है। इस बात पर मुझे कभी संदेह नही रहा। और कभी ना कभी ऐसा कोई प्रमाण भी मिलता ही रहा जो इस बात को सही साबित करता चला गया।
अभी पिछले हफ़्ते की बात है। मैं स्कूल से लौटी तो अपनी सोसाइटी की लिफ्ट तक पहुँचने के बाद मैंने जैसे ही लिफ्ट का बटन दबाया मुझे लगा कि मेरे पीछे शायद दो लड़के आ कर खड़े हुए हैं। तभी ध्यान आया कि ये तो बाहर ही बैठे थे। उनमें से एक के हाथ में शायद बिजली का तार था, या तार जैसा ही कुछ था। यूँ मैं कोशिश करती हूँ कि किसी और के साथ लिफ्ट में ना ही जाऊँ तो बेहतर है। पर हर वक़्त तो ऐसा कर नही सकती मैं। वो दोनों लड़के भी मेरे साथ-साथ लिफ्ट में घुस गए। अच्छी बात ये है कि लिफ्ट की बिजली और कैमरा दोनों ठीक रहते हैं।
मैंने पूछा आप कौन-सी फ्लोर पर जायेंगे। एक लड़के ने जवाब दिया छठी। मैंने 6 का बटन दबा दिया। वो एक दूसरे से बात करने लगे, बात अंग्रेजी में की, मुझे हैरत हुई। कुछ ही सेकण्ड में लिफ्ट छठी फ्लोर पर आ रुकी। लिफ्ट का दरवाज़ा खुला वो दोनों बाहर निकलने लगे। और जैसे ही मैंने अपनी फ्लोर का बटन दबाने के लिए हाथ आगे किया उनमें से एक लड़का रुका और पूछने लगा आप कौन सी फ्लोर पर जाएँगी, बटन दबा दीजिये। मैंने गुस्से में कहा मैं जानती हूँ क्या करना है। तभी वो बोला नही मैं इसलिये कह रहा था क्यूँकि शायद किसी ने नीचे से बटन दबा दिया है अगर आपने जल्दी ना कि तो आप वापिस नीचे चली जायेंगी। तभी लिफ्ट का दरवाज़ा बन्द हो गया। मैंने सोचा झूठ बोला है शायद इसने। शायद जानबूझकर परेशान करना चाहता था। मेरा फ्लोर आया मैं लिफ्ट से उतर गई तभी मैंने सोचा ज़रा रुक के देखूँ। और सच में लिफ्ट दूसरी मंज़िल पर जा कर रुक गई। मैंने फ्लैट की बेल बजाई। माँ ने दरवाज़ा खोला और अंदर आते-आते मैं ये सोचने लगी कि कैसी सोच हो गई है मेरी। कोई लड़का अगर मदद भी करना चाहता हो तो मैं ये सोचूँगी कि अकेली समझ कर परेशान कर रहा है।
फिर ख़्याल आया कि वो लड़का क्या सोच रहा होगा कि देखो मैं मदद कर रहा था और ये एटिट्यूड दिखा कर चली गई। अब ना उसकी गलती है और ना मेरी। आखिर क्या वजह है कि हम लड़कियाँ या महिलायें ऐसी सोच रखने पर मज़बूर हो गई हैं? क्यों हम लिफ्ट में अकेले जाना ही बेहतर समझती हैं? आखिर क्यों कोई मददगार भी हमें दुश्मन ही नज़र आता है? हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहाँ अकेली लड़की या अकेली औरत खुद को अपने फ्लैट के साथ लगी लिफ्ट तक में सुरक्षित महसूस नही करती है। ऐसे में मैं क्या लिखूँ कि गलती मेरी है कि मैंने किसी मदद करने वाले को गलत समझा, गलती उस लड़के की है जिसने मर्द होकर औरत की मदद की या फिर इस समाज की जिसके हालातों ने हमारी सोच ही ऐसी कर दी है???

No comments:

Post a Comment

लिखने बैठे...तो सोचा...

लिखने बैठे, तो सोचा, यूँ लिख तो और भी लेते हैं, ऐसा हम क्या खास लिखेंगे? कुछ लोगों को तो ये भी लगेगा, कि क्या ही होगा हमसे भला, हम फिर कोई ब...