Sunday 20 July 2014

आख़िर मैं क्या ढूँढती हूँ?

पानी की बूँदों में तो,
कभी ओंस के मोतियों में,
उमड़ते बादलों में तो,
कभी बहती हवाओं में,
आख़िर मैं क्या ढूँढती हूँ?

अजनबी चेहरों में तो,
कभी अपनों के बीच में,
हाथों की लकीर में तो,
कभी अपनी तकदीर में,
आख़िर मैं क्या ढूँढती हूँ?

दुनिया की इस भीड़ में तो,
कभी अपनी तन्हाई में,
जवान-सी महफ़िल में तो,
कभी अपने अकेलेपन में,
आख़िर मैं क्या ढूँढती हूँ?

शब्दों के इस जाल में तो,
कभी अपने दिल के हाल में,
कागज़ों के जंजाल में तो,
कभी उलझे हुए हर सवाल में,
आख़िर मैं क्या ढूँढती हूँ?

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