Saturday 19 July 2014

'इश्क'


'इश्क' इस एक लफ्ज़ ने दुनिया को दीवाना बना रखा है। जाने क्यूँ और कैसे पर सारी ही दुनिया पागल सी है इश्क के लिए। किसी को किसी चेहरे से इश्क है, किसी को किसी की अदाओं से, किसी को किसी की बातों से तो किसी को किसी की यादों से, किसी को खुद से तो किसी को किसी अजनबी से। यूँ समझ लीजिये जैसे इश्क हर कहीं, हर जगह, हर समय मौजूद है।

ऐसा नही है कि मुझसे पहले किसी ने इश्क पर कुछ लिखा नही है और आपने भी कभी इश्क को पढ़ा नही है। बल्कि मुझे तो लगता है कि शायद इश्क ही इकलौता ऐसा शब्द है इस दुनिया में, जिस पर बहुत कुछ लिखा गया है और जिसे बहुत पढ़ा गया है। फिर मैं क्या नया लिखने वाली हूँ?

सच कहूँ? तो कुछ भी नया सा ना मैं लिखने वाली हूँ, ना आप कुछ नया सा पढ़ने वाले हैं। यूँ समझ लीजिये कि बस वही पुरानी शराब है, हाँ पर बोतल ज़रूर नई है। अब देखना ये है कि क्या आप इसका लुत्फ़ उठा पाते हैं या नही।

मैं कोई बहुत महान लेखिका नही हूँ, पर हाँ हर ज़ज्बात को शब्दों में उतारने की एक बुरी सी आदत है मुझे। फिर 'इश्क' जैसे शब्द पर कुछ ना लिखूँ, ऐसा कैसे हो सकता है। मैं कुछ भी लिखने से पहले आपसे पूछना चाहूँगी कि आपकी नजर में इश्क क्या है? पहली नज़र का आकर्षण, या कोई लगाव, या किसी की ओर झुकाव या फिर खिंचाव? सोचिये एक बार अपने मन में फिर आगे पढ़िएगा।

मुझे उम्मीद है आपने इश्क की कोई परिभाषा ज़रूर सोच ली है। चलिए आपकी नजर में इश्क जो भी है पर अगर वो ऐसा है तो क्यूँ है? क्या उसकी वजह आपको किसी से इश्क हुआ है या था, ये है। शायद हाँ, या शायद नही। मैं यहाँ कोई परिभाषा या अर्थ ना देते हुए सिर्फ इतना लिख रही हूँ कि हर इंसान की नजर में इश्क की अपनी एक परिभाषा है। किसी के लिए महज आकर्षण भी इश्क है और किसी के लिए आकर्षण इश्क नही सिर्फ आकर्षण है। मतलब आपका नज़रिया ही इश्क का अर्थ बनाता है।

अब आप कहेंगे कि मैंने तो कुछ बताया ही नही इश्क के बारे में। ऐसा नही है। मैंने वो लिखा है जो आप पढ़ना चाहते थे। नही समझे? इश्क की आपकी अपनी एक परिभाषा है और आप मेरे शब्दों में यकीनन उसी परिभाषा को ढूँढ रहे थे। देखिये वो आपको मिल ही गई है। मैंने ऊपर लिखा भी है कि इश्क आपकी अपनी नज़र में एक अलग परिभाष लिए है। मैं इस तरह आपका मन नही रख रही हूँ बल्कि एक बात को सामने ला रही हूँ कि 'इश्क' यूँ तो एक ही शब्द है, पर इसकी परिभाषायें अलग-अलग और इसके लिए नजरिये भी अलग-अलग ही हैं। पर एक सच जो हमेशा इसके साथ जुड़ा है, वो ये कि इश्क हर कहीं, हर जगह, हर समय रहता है।

इन पंक्तियों के साथ विराम दे रही हूँ-
"इश्क जो है,
जैसा है,
जहाँ है।
मेरे यार,
तू जहाँ है,
ये वहाँ है...!"

No comments:

Post a Comment

लिखने बैठे...तो सोचा...

लिखने बैठे, तो सोचा, यूँ लिख तो और भी लेते हैं, ऐसा हम क्या खास लिखेंगे? कुछ लोगों को तो ये भी लगेगा, कि क्या ही होगा हमसे भला, हम फिर कोई ब...