Sunday 26 May 2019

एक छोटी-सी मुलाकात

हर कहानी की तरह ये कहानी भी कुछ अलग ही है। एक खूबसूरत सी शाम है, और भीड़ भरा एक बाज़ार है। ज़िन्दगी मानो यहाँ-वहाँ दौड़ रही है। और इसी भीड़ में कहीं टकराना है अश्क़ और नयन को। अश्क़ हमारी कहानी का नायक है और नयन है उसकी नायिका। अश्क़ इस शहर में अकेला रहता है और उसका परिवार रहता है बुलन्दशहर में। नयन इसी शहर की है और शहर है दिल्ली। जनपथ का बाज़ार ,जहाँ आपको क्या नही मिलेगा? बस यहीं उनकी किस्मत को भी आज मिलना है। जनपथ मानो एक गोल-मोल सी भूल-भुलैया है, कहीं बाज़ार तो कहीं बड़ी-बड़ी ईमारतें। बन्दा अगर यहाँ के रास्तों से वाकिफ़ ना हो तो समझो खो ही जायेगा। बस यहीं किसी रेड-लाइट पर रुकी है अश्क़ की कार। और ठीक उसके सामने से सड़क को पार करती निकलती है नयन। नही-नही अभी नही, ये मुलाकत अभी नही होगी। अब क्यूँकि अश्क़ इस भूल-भुलैया में खो गया है तो उसका आख़िरी सहारा गूगल मैप है, तो अपनी मंज़िल का मैप वह लगा चुका है और बढ़ चुका है नयन की ओर। और नयन भी उसी की ओर बढ़ रही है शायद। अचानक अश्क़ का फ़ोन बज उठता है और वहाँ से एक प्यारी सी आवाज़ आती है,"हेल्लो अश्क़ आप कितनी देर में पहुँचेंगे? मैं रिगल सिनेमा के पास पहुँच गई हूँ।" अश्क़,"मैं बस पाँच मिनट में आपके पास पहुँचने वाला हूँ।"
और पाँच मिनट के अंदर अश्क़ की कार रिगल सिनेमा के आगे रुकती है। भीड़ इतनी है कि यहाँ किसी जाने-पहचाने इंसान को भी पहचानना मुश्किल था और इस भीड़ में इन दोनों को एक-दूसरे को ढूँढना था। अश्क़ कार से बाहर आता है और किसी को फ़ोन लगाता है अचानक उसके कंधे पर कोई हाथ रखता है और जैसे ही वो मुड़ता है नयन उसके ठीक सामने खड़ी होती है। दोनों एक-दूसरे को पहचानने की कोशिश करते हैं। वैसे एक बात है कि मैट्रिमोनियल साइट्स से रिश्ता ढूँढ़कर यूँ मिलने आना किसी एडवेंचर से कम नही होता है। यूँ वो दोनों फ़ोन पर कई बार बात कर चुके हैं पर आमने-सामने की यह पहली मुलाक़ात है उनकी। फॉर्मल मेल-मिलाप के बाद ज़रूरी ये है कि कोई शांत जगह तलाश की जाये जहाँ बैठ कर कुछ बात की जा सके। तो तय ये होता है कि सी सी डी में बैठा जाये। अश्क़ वहाँ पहुँच कर कॉफ़ी आर्डर करता है और नयन का पहला वाक्य होता है,"हम बिल शेयर करेंगे, ओके?" अश्क़ हाँ में सिर हिला देता है। और फिर शुरू होता है बातों का सिलसिला। पहली बार अश्क़ को लगता है कि नयन बहुत बातूनी है और उसे चुप करवाना बहुत मुश्किल भी है, पर बोर नही कर रही है बल्कि उसकी आवाज़ कानों को एक सुकून सा दे रही है। उसका दाहिना हाथ बार-बार उसके दायें कान के झुमके को छूता है और बाएँ हाथ से वो अपनी झुल्फ़ों को बार-बार ठीक करती है जो हवा के कारण उसके चेहरे पर आ रही हैं। अचानक नयन को लगता है कि शायद सिर्फ़ वही बोले जा रही है और अश्क़ बिल्कुल चुप हो गया है तो वह अश्क़ को कहती है,"आप अपने बारे में बताईये कुछ?" अब अश्क़ को मौका मिला है बोलने का, पूछने का, कहने का, पर पता नही क्या हुआ है कि उसके सवाल-जवाब सब खत्म हो गए हैं। नयन को ये अजीब लग रहा है और एक ख्याल उसके मन में आ चुका है,"ये मुझे रिजेक्ट करने वाला है पक्का। ये कितना डूड टाइप बन्दा है और मैं एवरेज से भी कम, इसको क्यूँ पसन्द आऊँगी मैं? कहा भी था मैंने मम्मी से कि नही मिलना है मुझे। कहाँ ये और कहाँ मै? जोड़ी ही नही बनेगी। क्या सोचता होगा ये मेरे बारे में?" तभी कॉफी आ जाती है। और अश्क़ अभी भी चुप है। नयन ही जानती है कि अंदर ही अंदर उसे कैसे लग रहा है। अचानक अश्क़ पूछता है,"मैं रियलिटी में कैसा लगा आपको?" और नयन तपाक से जवाब देती है,"बहुत अच्छे।" और ऐसा कह कर वह शर्मा जाती है। बस यहाँ से शुरू हो ही जाती है एक फॉर्मल सी बातचीत। करीब एक घण्टा होने को है, कॉफ़ी पहले ही खत्म हो गई है। और जैसे ही नयन अपनी घड़ी की ओर देखती है, अश्क़ पूछ बैठता है,"चलें?" नयन हाँ में सिर हिला देती है। बाहर आकर अश्क़ पूछता है,"थोड़ी देर पालिका पार्क में घूमें?" नयन को ना कहने की कोई वजह नही दिखाई देती है तो वो हाँ कह देती है। यूँ एक घण्टा और निकल जाता है। अश्क़ पूछता है कि आपको देर हो जायेगी , चलिए चलते हैं। इस पर नयन कहती हैं,"नही में अभी मार्किट में रुकूँगी मुझे कुछ लेना है। आप चलिये।" नयन को यूँ अकेले छोड़ना अश्क़ को अच्छा नही लगता है तो वो भी साथ आने की ज़िद करता है। नयन की शॉपिंग और कुछ नही बल्कि झुमकों की ढेर सारी खरीदारी है। और पालिका है भी इस बात के लिए खूब प्रसिद्ध। बस अब हो ये रहा है कि नयन के हर झुमके के लिए आईना अश्क़ बना रहा है। और धीरे-धीरे वो उसके दिल में उतर रही है। अश्क़ को लगता है कि नयन को वहाँ अकेले ना छोड़ना बस यही एक फैंसला है जिस पर उसे सारी जिंदगी पछतावा नही होगा। क्यूँकि वो छोटी सी मुलाकात और वो हल्की-फुल्की शॉपिंग उसकी पूरी जिंदगी बनाने वाले थे।

वो कहते हैं ना,
"कभी-कभी एक मुलाकात भी ज़िन्दगी भर की ख़ुशियाँ दे जाती है और हमें वो मिल जाता है जिसको हम उम्र भर ढूँढते रहे हों...!"

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