कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हम दिल में बहुत कुछ दबाये घूमते रहते हैं, कभी दर्द, कभी खुशी, कभी कोई ख्वाहिश तो कभी कोई अरमान। यूँ तो सभी पास होते हैं हमारे लेकिन फिर भी जाने क्यूँ, या तो कोई समझ नही पाता है या फिर शायद झाँक नही पाता है हमारे दिल में। और हम एक बोझ सा लिये घूमते रहते हैं अपने दिल पे।
ज़िन्दगी है चलती रहती है, हमें आदत भी हो जाती है। या यूँ कहिये कि शायद हम ढल जाते हैं अपनी ज़िन्दगी में। सोचते हैं कि शायद ये ऐसा ही है, ऐसा ही रहेगा, ना बदला है और ना शायद बदलने वाला है। ऐसा नही है कि ये ऐसे हालात हैं जिनसे हम निकल नही सकते। हाँ ये है कि शायद अकेले नही निकल सकते। कोई ऐसा एक ज़रूर होता है जो पता नही कैसे मगर झाँक लेता है हमारे दिल में, और पता नही कैसे पर बिना हमारे कुछ कहे, वो समझ जाता है सब कुछ।
इस रिश्ते को इश्क की नज़र से मत देखिये। हो सकता है कि वो इंसान, वो शख्स जो आपके बिन कहे, आपकी हर बात समझ जाये, वो सिर्फ एक दोस्त हो, या फिर कोई ऐसा इंसान जिसे आप सिर्फ जानते भर हों, या पहचानते भर हों। पर ऐसा कोई होता है और ज़रूर होता है। अब चाहे आप उसे पहचान पायें या नही पर वो कहीं ना कहीं और कभी ना कभी आपको, आपके दिल को और उसके ज़ज्बातों को पहचान जाता है, वो भी आपके बिना कोई ईशारा दिये।
आप कहेंगे ज़रूरी तो नही कि हर किसी को ऐसा शख्स मिल ही जाये। मैं कहूँगी यकीन मानिये हम सभी की ज़िन्दगी में ऐसा कोई एक ज़रूर आता है जो हमें, हमसे ज्यादा और हमसे पहले समझ जाता है। अब चाहे वो कोई दोस्त हो, कोई अपना हो या फिर कोई अजनबी। और शायद वो एक शख्स हमें हमारे दिल पर रखे उस बोझ से मुक्त करवा देता है। वो बिना हमारे कहे, हमारी हर बात को सुन लेता है, वो बिना हमारे दिखाये, हमारे हर दर्द, हर ख़ुशी को देख लेता है। वो जान लेता है कि हम कब खुश हैं और कब दुखी। हमारी आँखों का हर सच और हर झूठ वो देख लेता है, जान लेता है। जाने कैसे पर वो एक इंसान शायद हमें, हमसे भी ज्यादा और बेहतर जान लेता है।
ऐसा एक इंसान कहीं ना कहीं है और हर किसी के लिए है। बस इंतज़ार है तो उसके मिलने का, उसके दिखने का। बस इंतज़ार है तो उसका हमें और हमारे अरमानों को समझने का। और जब तक आप उससे टकराते नही हैं और वो आप तक पहुँचता नही है, ज़िन्दगी के रेडियो पर इस धुन, इस गाने को बजाते रहिये-
"हर दिल में अरमाँ होते तो हैं...बस कोई...समझे ज़रा...!"
ज़िन्दगी है चलती रहती है, हमें आदत भी हो जाती है। या यूँ कहिये कि शायद हम ढल जाते हैं अपनी ज़िन्दगी में। सोचते हैं कि शायद ये ऐसा ही है, ऐसा ही रहेगा, ना बदला है और ना शायद बदलने वाला है। ऐसा नही है कि ये ऐसे हालात हैं जिनसे हम निकल नही सकते। हाँ ये है कि शायद अकेले नही निकल सकते। कोई ऐसा एक ज़रूर होता है जो पता नही कैसे मगर झाँक लेता है हमारे दिल में, और पता नही कैसे पर बिना हमारे कुछ कहे, वो समझ जाता है सब कुछ।
इस रिश्ते को इश्क की नज़र से मत देखिये। हो सकता है कि वो इंसान, वो शख्स जो आपके बिन कहे, आपकी हर बात समझ जाये, वो सिर्फ एक दोस्त हो, या फिर कोई ऐसा इंसान जिसे आप सिर्फ जानते भर हों, या पहचानते भर हों। पर ऐसा कोई होता है और ज़रूर होता है। अब चाहे आप उसे पहचान पायें या नही पर वो कहीं ना कहीं और कभी ना कभी आपको, आपके दिल को और उसके ज़ज्बातों को पहचान जाता है, वो भी आपके बिना कोई ईशारा दिये।
आप कहेंगे ज़रूरी तो नही कि हर किसी को ऐसा शख्स मिल ही जाये। मैं कहूँगी यकीन मानिये हम सभी की ज़िन्दगी में ऐसा कोई एक ज़रूर आता है जो हमें, हमसे ज्यादा और हमसे पहले समझ जाता है। अब चाहे वो कोई दोस्त हो, कोई अपना हो या फिर कोई अजनबी। और शायद वो एक शख्स हमें हमारे दिल पर रखे उस बोझ से मुक्त करवा देता है। वो बिना हमारे कहे, हमारी हर बात को सुन लेता है, वो बिना हमारे दिखाये, हमारे हर दर्द, हर ख़ुशी को देख लेता है। वो जान लेता है कि हम कब खुश हैं और कब दुखी। हमारी आँखों का हर सच और हर झूठ वो देख लेता है, जान लेता है। जाने कैसे पर वो एक इंसान शायद हमें, हमसे भी ज्यादा और बेहतर जान लेता है।
ऐसा एक इंसान कहीं ना कहीं है और हर किसी के लिए है। बस इंतज़ार है तो उसके मिलने का, उसके दिखने का। बस इंतज़ार है तो उसका हमें और हमारे अरमानों को समझने का। और जब तक आप उससे टकराते नही हैं और वो आप तक पहुँचता नही है, ज़िन्दगी के रेडियो पर इस धुन, इस गाने को बजाते रहिये-
"हर दिल में अरमाँ होते तो हैं...बस कोई...समझे ज़रा...!"
बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने...यू ही आगे बढ़ते रहिए ... शुभकामनाओं के साथ...
ReplyDelete"शुक्रिया अरविन्द जी...!" :-)
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