कुछ शब्द झड़ते हैं
कागजों को भरते हैं.
जाने बेअसर रहेंगे,
या कोई असर करते हैं?
महकते हैं पन्नों पर इत्र से,
कुछ शब्द मन की कलम से.
लिख देने भर को नही,
कह देने भर को नही.
पढ़ लेने भर को नही,
सुन लेने भर को नही.
बरसते हैं जो झर-झर से,
कुछ शब्द मन की कलम से.
मन की कहते हैं,
मन से बताते हैं.
मन की सुनते हैं,
मन से सुनाते हैं.
उमड़ते हैं जो मन के भीतर से,
कुछ शब्द मन की कलम से.
कागजों को भरते हैं.
जाने बेअसर रहेंगे,
या कोई असर करते हैं?
महकते हैं पन्नों पर इत्र से,
कुछ शब्द मन की कलम से.
लिख देने भर को नही,
कह देने भर को नही.
पढ़ लेने भर को नही,
सुन लेने भर को नही.
बरसते हैं जो झर-झर से,
कुछ शब्द मन की कलम से.
मन की कहते हैं,
मन से बताते हैं.
मन की सुनते हैं,
मन से सुनाते हैं.
उमड़ते हैं जो मन के भीतर से,
कुछ शब्द मन की कलम से.
बहुत खूब
ReplyDelete"शुक्रिया हरीश जी...!"
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