हाथों की लकीरों में है,
या फिर माथे की।
है बीते कल में छिपी,
या आने वाले कल में है लिखी।
ये है भी कुछ,
या कुछ है ही नही।
इन्सान की कल्पना है बस,
या ये है हकीकत कोई।
बनाया है इसने हमें,
या हमने है ये बनाई।
कभी लगा है हाथ में ही है हमारे,
कभी समझ में ही ना आई।
सो गई किसी की,
तो किसी ने जगाई,
बनाने वाले ने देखो यारों,
'किस्मत' भी क्या चीज़ बनाई।
Sunday, 25 January 2015
किस्मत
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