याद नही कब से,
पर लिखने का शौंक है मुझे।
कभी कागजों पर,
कभी कापियों पर।
यूँ बहुत कुछ,
लिख चुकी हूँ मैं।
ना मिला कुछ तो,
किसी फटे तन्हा पन्ने पर।
काली स्याही में तो,
कभी लाल रंग में डुबो कर।
कभी एक पंक्ति में,
कभी एक शब्द में।
अपने लिए भी लिखा,
लिखा किसी ख़ास के लिए भी।
महफ़िल पर, तन्हाई पर,
इश्क़ पर, रुसवाई पर।
गुस्से पे काबू पाने को,
तो कभी किसी को जलाने को।
भाषा कभी ईशारों की थी,
तो थी कभी व्यंग्य की।
होकर बेबाक लिखा,
सोचकर बिंदास लिखा।
शब्दों को तोड़ा-मरोड़ा,
जज़्बातों को जमकर निचोड़ा।
लिख कर मिटाया बहुत बार,
कागज़ों को जलाया बहुत बार।
किसी को शिकायत रही,
तो कोई तारीफ़ करने लगा।
कोई कहने लगा पागल हो,
कोई बोला, डूबते का साहिल हो।
मुझसे शिकायत है बहुतों को,
मुझसे कोई शिकवा भी है।
यूँ साथ है दुनिया,
पर 'मन' कहीं तन्हा भी है।
मेरे शब्दों में छिपा है,
बहुत कुछ मुझसे जुड़ा।
यूँ कहानी मैंने अपनी,
आज तक कहीं लिखी नही।
पर मेरे दिल की तस्वीर,
मेरे शब्दों में क्या दिखी नही?
मैं वही हूँ जो बताते हैं शब्द मेरे,
मैं वही हूँ जो दिखाते हैं शब्द मेरे।
यूँ लिखती रहूँगी,
आख़िर शौंक है लिखना मेरा।
जड़ होते इस 'मन' को,
शब्द ही देते जान हैं।
यूँ देह चलती-फिरती है,
शब्द फूँकते इनमें प्राण हैं।
बहुत कुछ लिख चुकी हूँ,
बहुत कुछ लिखूँगी अभी।
हैं बहुत से ज़ज़्बात,
जो शब्दों में कभी उतरे ही नही।
अब सोचती हूँ एक दिन,
सम्भाल लूँ ज़रा उन्हे भी।
रख दूँ उठा के,
कहीं सलीके से।
वो जो यूँ ही फैले पड़े हैं,
कुछ ख़्याल मेरे बिखरे से।
Friday, 19 June 2015
कुछ ख़्याल मेरे बिखरे से...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
लिखने बैठे...तो सोचा...
लिखने बैठे, तो सोचा, यूँ लिख तो और भी लेते हैं, ऐसा हम क्या खास लिखेंगे? कुछ लोगों को तो ये भी लगेगा, कि क्या ही होगा हमसे भला, हम फिर कोई ब...
-
कभी-कभी आगे बढ़ते हुए जब अचानक पीछे मुड़ कर देखते हैं तो ख़्याल आता है कि काश उस वक़्त ये ना हो कर वो हो गया होता तो शायद आज तस्वीर कुछ अलग होती...
-
These days internet is loaded with a lot of pages containing a detailed information about E Governance i.e. Electronic Governance. An...
-
कहते हैं जननी से धन्य ना कोई हो सका है और ना ही कभी होगा। एक माँ जो अपने बच्चे को अपने ही रक्त से सींचती है, उसे अपने ही शरीर का हिस्सा देक...
खुब
ReplyDelete"जी शुक्रिया...!" 😊
Delete