दर्द हो या हो कोई ग़म,
हो लबों पे हँसी या हो आँखें नम,
ज़ख्म भीतर हो या कि हो बाहर,
छिपाया गया हो या हो ज़ाहिर,
सब कुछ ज़ुबाँ से कैसे कहें,
पर ना कहें, तो क्या करें,
कोशिशें भी ज़रूरी हैं,
सबकी अपनी मज़बूरी है,
जज़्बातों को दिखाना भी है,
दर्द को छिपाना भी है,
सब कुछ कहना भी है,
पर चुप रहना भी है,
पर कोई फिर भी समझ लेगा,
और कोई फिर भी पढ़ लेगा,
इन खामोश-सी बातों को,
इन अनकही-सी आँखों को,
कुछ ना कह कर भी देखना,
बहुत कुछ कह देंगी एक दिन,
ये खामोशियाँ.....................
Tuesday, 13 January 2015
ये खामोशियाँ
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लिखने बैठे...तो सोचा...
लिखने बैठे, तो सोचा, यूँ लिख तो और भी लेते हैं, ऐसा हम क्या खास लिखेंगे? कुछ लोगों को तो ये भी लगेगा, कि क्या ही होगा हमसे भला, हम फिर कोई ब...
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These days internet is loaded with a lot of pages containing a detailed information about E Governance i.e. Electronic Governance. An...
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लिखने बैठे, तो सोचा, यूँ लिख तो और भी लेते हैं, ऐसा हम क्या खास लिखेंगे? कुछ लोगों को तो ये भी लगेगा, कि क्या ही होगा हमसे भला, हम फिर कोई ब...
Very nice sister
ReplyDelete"Thank you so much Brother...!" :-)
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