छम से जो गिरती
गालों पे मेरे
भिगो देती मुझे भीतर तक
वो पहली बारिश की बूँदें।
सौंधी सी उठती महक
सूखी उस मिट्टी से
जिसकी छाती पर पड़ती
वो पहली बारिश की बूँदें।
शीशे की खिड़कियों पर
टप-टप ढुलकती,
फिर सर सी फिसलती
वो पहली बारिश की बूँदें।
बिछड़ों की बढ़ाती बेताबी
मिला के किसी को
उनकी शाम बनाती गुलाबी
वो पहली बारिश की बूँदें।
जिसके इंतज़ार में रहे ज़मीं सारी
जिसे बरसाता आसमां जी भर कर
जो बुझाती प्यास हर 'मन' की
वो पहली बारिश की बूँदें।
गालों पे मेरे
भिगो देती मुझे भीतर तक
वो पहली बारिश की बूँदें।
सौंधी सी उठती महक
सूखी उस मिट्टी से
जिसकी छाती पर पड़ती
वो पहली बारिश की बूँदें।
शीशे की खिड़कियों पर
टप-टप ढुलकती,
फिर सर सी फिसलती
वो पहली बारिश की बूँदें।
बिछड़ों की बढ़ाती बेताबी
मिला के किसी को
उनकी शाम बनाती गुलाबी
वो पहली बारिश की बूँदें।
जिसके इंतज़ार में रहे ज़मीं सारी
जिसे बरसाता आसमां जी भर कर
जो बुझाती प्यास हर 'मन' की
वो पहली बारिश की बूँदें।
बारिश की अनगिनत बूँदें
ReplyDeleteदेखूं इन्हें आँखें मूंदें मूंदें
लाख कोशिश कर लूँ
कुछ कतरे आँखों में उतर जाते हैं
जो हज़ार कतरों को साथ अपने बहा लाते