Saturday 11 April 2015

टी.वी. खराब ही अच्छा है...


अजीब-सा लग रहा होगा मेरे इस पोस्ट का टाइटल आपको। है ना? पर सच में टी. वी. खराब ही अच्छा है। वो बात कुछ ऐसी है कि पिछले दिनों मेरे कमरे का टी. वी. खराब हो गया। अब वैसे ये कोई बड़ी बात नही है। मशीन है भई खराब हो भी सकती है। आखिर गारंटी और वारंटी भी खत्म हो चुकी थी बेचारे की अब तो। :-P

तो हुआ ये कि टी. वी. खराब हुआ तो समस्या ये हुई कि अब अपने मनपसन्द नाटक कैसे देखे जायें तो हमने और सिस्टर ने पापा और मम्मी के कमरे के टी. वी. की तरफ़ उम्मीद भरी नज़रों से देखा। अब हम हैं नौकरी पेशा बन्दे तो रात के वक़्त ही दो-चार प्रोग्राम देख लेते हैं और छुट्टी हो तो एक या दो फ़िल्म भी देख लेते हैं। तो भई अब हुआ ये कि अब शाम होते ही हम दोनों पहुँच जाते है माँ-पापा के कमरे में।

ऐसे लिविंग रूम में भी होता है टी. वी. पर जाने क्यूँ हम दोनों को वहाँ मजा नही आता। अब हर शाम हम सभी एक साथ बैठते हैं, खाना वहीँ खाते हैं, एक साथ ठहाके लगाते हैं, एक परिवार जो एक साथ होकर भी एक साथ नही बैठ पाता था, अब वही शाम के 6/7 बजे से रात के करीब 9/10 बजे तक एक साथ बैठने लगा। एक दिन हम सभी टी. वी. देख रहे थे और खाना खा रहे थे, तभी पापा बोले,"कितना अच्छा लग रहा है ना सब एक साथ बैठ कर खाना खा रहे हैं, वो भी कितने दिनों के बाद।" पापा की ये बात सुन कर एक पल के लिए मेरे ज़हन में ये ख़्याल आया,"हमारी ज़िन्दगियाँ भी कैसी हो गई हैं ना, एक ही घर में रहते हैं, लेकिन फिर भी कितने दूर हैं।" बुरा लगा मुझे, बहुत बुरा लगा। इससे पहले मैं और सिस्टर अपने कमरे में बैठ जाते थे टी. वी. चला कर और पापा-मम्मी अपने कमरे में। और बस ऐसे ही चल रही थी ज़िन्दगी। वैसे ऐसा नही है कि हम लोग एक साथ नही बैठते थे इससे पहले, खूब बैठते थे, मजे भी करते थे, लेकिन इस टी. वी. के खराब होने पर कुछ बातों ने मेरे ज़हन पर बड़ी गहरी छाप छोड़ी। थोड़ा ज़्यादा वक़्त एक-दूसरे के साथ बिताने को मिला। हम एक साथ बैठे, एक साथ नाटक देखे, किरदारों पर बातें की, अपनी राय दी, किसी की राय सुनी। मतलब हमने इन पलों को जिया, खूब जिया।

अब सोचती यूँ ये टी. वी. ना खराब ही अच्छा है। पर ये भी जानती हूँ कि एक दिन हम इसको ठीक करवा लेंगे। और फिर से हम अपने कमरे में ही बैठना शुरू कर देंगे। पर हाँ एक बात है कि अब हम कोशिश किया करेंगे कि कम से कम एक या दो प्रोग्राम एक साथ बैठ कर ज़रूर देखें। ऐसे या वैसे किसी तरह ही सही परिवार साथ रहे तो अच्छा ही लगता है। है ना?

चलिये इन शब्दों के साथ इस पोस्ट को विराम दे रही हूँ-
"जो सिर्फ साथ रहे वो परिवार नही, परिवार वो है जो साथ जिये।"

1 comment:

  1. "शुक्रिया ऋषभ, आपके ब्लॉग्स देखे काफ़ी अच्छा लिखते हैं आप भी, लिखते रहिये...!" :-)

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